शास्त्री नगर में जागरण और ट्रस्ट के ढाबे के नाम पर घालमेल,आयकर विभाग के नियम विरुद्ध
– टाइगर कमांड
नई दिल्ली : मंदिर, ट्रस्ट और उत्सव समितियों के माध्यम से अब मनीलॉन्ड्रिंग नहीं हो सकेगी। सरकार ने आम बजट में आयकर अधिनियम में कुछ फेरबदल करते हुए धार्मिक संस्थाओं पर 50 हजार से अधिक का डोनेशन लेने पर रोक लगा रखी थी। जबकि कोरोना काल के बाद कुछ चंदाखोर मंडलियां फिर सक्रिय हो गयी है। शास्त्री नगर में भी अभी बीते दिनों एक जागरण मंडली चुनावों को देखते हुए। माल लपेटने के लिए फिर से सक्रिय हो गयी है। यहाँ के नेताओं के नाम होर्डिंग और कार्ड में डालकर यह चंदाखोर मंडलियां जमकर मनीलांड्रिंग भी कर रही है। लेकिन आम जनता धर्म के मामले को देखकर चुप ही रहती है। क्योंकि ये लोग जानते है कि धर्म की आड़ में कैसे अपना सालों के खर्चा चलाया जा सकता है। बरहाल यह नियम चेरिटेबल ट्रस्ट पर भी लागू होते है। यहाँ शास्त्री नगर वार्ड में भी एक बहुत ही स्वघोसित प्रमुख समाजसेवी का भी ट्रस्ट है । जिसका हिसाब आज तक किसी को भी समझ नही आया कि आखिर रामलीला के चंदे,डिस्पेंसरी की पर्ची के पैसे कहाँ से आते है। और कहाँ चले जाते है। जिस खाने के ढाबे को एक सांसद 1 भरपेट भोजन रुपये में नही चला पाए उसी तरह के ढाबे को शास्त्री नगर में 5 रुपये में भरपेट भोजन के लिए चलाया जा रहा है। जिसमे ढाबे का राशन किस चंदे से आता है ये आज तक राज ही है। लेकिन इतना तय है। कि यहाँ जागरण वाले का गुरु यह 5 रुपये का ढाबा चलाने वाला ही हो सकता है। अब आपको बताते है कि
मंदिर, ट्रस्ट और उत्सव समितियों के माध्यम से अब मनीलॉन्ड्रिंग नहीं हो सकेगी। सरकार ने आम बजट में आयकर अधिनियम में कुछ फेरबदल करते हुए धार्मिक संस्थाओं पर 50 हजार से अधिक का डोनेशन लेने पर रोक लगा दी थी। इससे ज्यादा डोनेशन लेने वालीं संस्थाओं को बिना पंजीकरण कराए कोई छूट नहीं मिलेगी। 50 हजार से ज्यादा के डोनेशन को संस्था संचालक की व्यक्तिगत आय माना जाएगा। कथा समेत तमाम बड़े धार्मिक आयोजन करने वाले भी इस नियम के दायरे में हैं।
अब ऐसे धार्मिक आयोजनों की आड़ में काले धन को सफेद किया जा रहा है। धारा-80 जी के तहत आयकर में छूट के लिए पंजीकृत इन धार्मिक, सामाजिक संस्थाओं का इस्तेमाल लोक कल्याण की आड़ में बड़े लोग कर रहे हैं। इससे आयकर विभाग चौकन्ना हो गया है। दान के बदले रसीद जारी करने वाली इन संस्थाओं के साथ ही दानादाताओं पर भी आयकर की पैनी नजर है। पता लगाया जा रहा है कि दान देने वालों की हैसियत क्या है। दान व चंदे का विवरण मिलाया जा रहा है। गड़बड़ी मिलने पर इनके विरुद्ध कड़े कदम उठाए जाने के संकेत मिले हैं।
चैरिटी के लिए काम करने वाले ट्रस्टों व कोआपरेटिव सोसाइटियों की भूमिका की जांच कराई जा रही है। इसके लिए अलग से गठित सेल काम कर रहा है।
आसान भाषा में समझते हैं
धार्मिक स्थलों को अक्सर ट्रस्ट चलाते हैं. इन ट्रस्टों के पास अन्य संपत्तियां भी होती हैं. किसी फंक्शन के लिए या किसी अन्य इस्तेमाल के लिए प्रॉडक्ट्स की बिक्री के लिए, अगर प्रॉपर्टी को किराए पर दिया जाता है, तो इससे हुई आय पर टैक्स देना होगा. इसलिए, छूट और टैक्स सिर्फ मंदिरों पर ही नहीं, सभी धर्मों के लिए हैं.
– उल्लेखनीय है कि नोटबंदी के बाद धार्मिक संस्थाओं के माध्यम से बड़े पैमाने पर कालेधन को सफेद करने के मामले सामने आए थे।
– आयकर विभाग के सूत्र बताते हैं कि देश में 95 फीसदी से अधिक मंदिर,ट्रस्ट और दुर्गा और गणेश पांडालों के पास आयकर विभाग का पंजीयन नहीं है।
– आम बजट में पेश किए गए नए प्रावधान यह बताते हैं कि मंदिर,ट्रस्ट और संस्थाओं को मिलने वाले डोनेशन पर व्यक्ति को मिलने वाले उपहार के नियम लागू होंगे।
– हालांकि इन सभी को आयकर अधिनियम की धारा 12 एए के तहत पंजीयन का विकल्प दिया गया है।