जामिया के छात्र की चार्जशीट किसने
लीक की जवाबदेही तय करे कमिश्नर- हाईकोर्ट
इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि उत्तर पूर्वी दिल्ली में पिछले साल हुए दंगों के मामले में दायर चार्जशीट/आरोप पत्र पर अदालत के संज्ञान लेने से पहले ही उसका मीडिया में लीक होना अपराध है।
अदालत ने इस मामले की सुनवाई के दौरान 5 मार्च 2021 को पुलिस की आलोचना करते हुए कहा कि यह घटना अपराध है।
कमिश्नर जवाबदेही तय करे-
जस्टिस मुक्ता गुप्ता ने दिल्ली पुलिस आयुक्त सच्चिदानंद श्रीवास्तव को हलफनामा दायर कर जानकारी को मीडिया में लीक करने के लिए जिम्मेदार व्यक्ति की जवाबदेही तय करने को कहा है।
आरोप साबित-
अदालत ने कहा कि एक बार मीडिया में आने पर यह आरोप (लीक होने का) साबित हो चुका है। यह अब सिर्फ आरोप नहीं पुलिस को तय करना होगा कि यह किसने किया।
जस्टिस मुक्ता गुप्ता ने पुलिस के वकील से कहा,”यदि आप बहस करना चाहते हैं तो, मैं सुनने के लिए तैयार हूं। लेकिन यह समझें कि यह आरोपों के चरण से परे है।”
पुलिस के वकील अमित महाजन ने अदालत में कहा कि पूरक आरोप-पत्र के दस्तावेज/ सामग्री पुलिस द्वारा मीडिया में लीक नहीं की गई।
इसलिए पुलिस पर जिम्मेदारी तय नहीं की जा सकती, क्योंकि उन्होंने इसे लीक नहीं किया है।
मीडिया ने किया तो चोरी है, हर हाल में अपराध है-
इस पर अदालत ने कहा, ‘यह संपत्ति/ दस्तावेज (आरोप पत्र)एक पुलिस अधिकारी के हाथ में थे और अगर आपके अधिकारी ने ऐसा किया है तो यह अधिकारों का दुरुपयोग है, अगर इसकी मंजूरी किसी और को दी गई तो विश्वास का आपराधिक उल्लंघन है और अगर इसे मीडिया ने कहीं से लिया है तो यह चोरी है। इसलिए हर सूरत में अपराध बनता है।’
पुलिस ने बयान लीक किया-
अदालत जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने पूछताछ के दौरान जांच एजेंसी के समक्ष दर्ज कराए गए बयान को मीडिया में लीक करने पर पुलिस पर कदाचार का आरोप लगाया है।
चार्जशीट आरोपी से पहले मीडिया में लीक-
अदालत में तन्हा के वकील सिद्धार्थ अग्रवाल ने कहा कि पुलिस ने हाल ही में निचली अदालत के समक्ष पूरक आरोप पत्र दायर किया था और आरोपियों को इसकी प्रति उपलब्ध कराए जाने से पहले ही इसके कुछ अंश अगले ही दिन मीडिया के पास थे।
निचली अदालत ने तब तक पूरक आरोप-पत्र पर संज्ञान भी नहीं लिया था और तब निचली अदालत ने एक आदेश पारित कर मीडिया की आलोचना की थी। उन्होंने इस संदर्भ में अतिरिक्त हलफनामा दायर करने के लिए अदालत से समय की मांग की।
अदालत ने इस मामले में अगली सुनवाई 25 मार्च को तय की है।
पुलिस की जांच रिपोर्ट रद्दी का टुकड़ा-
उल्लेखनीय है कि एक मार्च को हाईकोर्ट ने इस मामले में पुलिस की सतर्कता जांच रिपोर्ट पर असंतोष जताया था। पुलिस की विजिलेंस रिपोर्ट को ‘अधपका’ और ‘ रद्दी कागज का बेकार टुकड़ा’ बताया था।
हाईकोर्ट ने मीडिया में सूचनाएं लीक होने को लेकर दिल्ली पुलिस को जबरदस्त फटकार लगाई।
अदालत को पुलिस और मीडिया हाउस, जी न्यूज मीडिया कॉरपोरेशन लिमिटेड के वकील विजय अग्रवाल के माध्यम से जवाबदेही के लिए सुनवाई करना बाकी है।
तन्हा के वकील ने पहले कहा था कि दस्तावेजों के लीक होने के संबंध में पुलिस द्वारा उठाए गए कदमों को लेकर सवाल की जांच के अलावा, एक संज्ञेय अपराध भी किया गया है और उचित कार्रवाई करना आवश्यक है.उन्होंने कहा था कि मीडिया घरानों- जी न्यूज मीडिया कॉरपोरेशन लिमिटेड और ऑप इंडिया के कदम ने मीडिया में इस तरह के दस्तावेज रखने के लिए नियमों (प्रोग्राम कोड) का उल्लंघन किया।
जी न्यूज सूत्र बताए-
हाईकोर्ट ने इससे पहले दंगा मामले में तन्हा के कथित कबूलनामे के प्रसारण पर जी न्यूज से सवाल किया था और कहा था कि इस तरह के दस्तावेजों को बाहर लाकर प्रकाशित नहीं किया जा सकता है।
अदालत ने मीडिया हाउस को निर्देश दिया था कि वह एक हलफनामा दाखिल करे, जिससे उस सूत्र का नाम पता चले जिससे संबंधित पत्रकार को दस्तावेज मिले थे।
चोरी के मामले से भी बदतर जांच की –
जस्टिस मुक्ता गुप्ता ने एक मार्च को दिल्ली दंगों की साजिश के मामले में सुनवाई करते हुए आसिफ इकबाल तनहा की रिट याचिका पर उनके मीडिया ट्रायल के खिलाफ दिल्ली पुलिस के सतर्कता विभाग को जमकर तलाड़ लगाई थी। अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि यह जांच छोटी-मोटी चोरी के मामले से भी बदतर है।
सतर्कता पूछताछ के लीक होने के सूत्र को स्थापित करने में विफल होने के कारण पुलिस अधिकारियों को कठोर आदेशों की चेतावनी देते हुए अदालत ने यह भी कहा था कि सुनवाई की अगली तारीख पर विशेष पुलिस आयुक्त (विजिलेंस) को उपस्थित होना होगा।
अदालत ने जांच रिपोर्ट के निष्कर्ष को खारिज करते हुए कहा कि केस फाइल की सूचना लीक केवल इसलिए असुरक्षित नहीं हो गई, क्योंकि दिल्ली पुलिस लीक के स्रोत की पहचान करने में विफल रही है।
बयान सड़क पर पड़ा कागज नहीं-
अदालत ने देखा कि जो इकबालिया बयान लीक हो गया है, वह मीडिया के लिए “सड़क पर पड़ा हुआ” कोई दस्तावेज नहीं है, जिसे आसानी से हासिल किया जा सके। अदालत ने आगे कहा कि यह मामला वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों द्वारा हैंडल किया गया है।
दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व करते हुए केंद्र सरकार के स्थायी वकील अमित महाजन ने यह स्वीकार किया कि लीकेज अवांछनीय है,
जांच की निष्पक्षता के प्रति पूर्वाग्रह-
जिसके लिए अदालत ने कहा कि यह सिर्फ “अवांछनीय ही नहीं है। बल्कि यह अभियुक्त और जाँच की निष्पक्षता के प्रति पूर्वाग्रह है।”
अदालत ने यह भी कहा कि यह अवमानना भी है।
अदालत ने कहा,”आप ध्यान दें, ये वरिष्ठ आईएएस अधिकारी हैं। आपने कहां पूछताछ की, आपने किससे पूछताछ की? फाइलें कहां भेजी गईं? कौन उन्हें दिल्ली सरकार और गृह मंत्रालय के पास ले गया? और उन्हें वहां से वापस कौन लाया?”
मीडिया ट्रायल-
ज़ी न्यूज़ सहित कई मीडिया चैनलों ने अपनी रिपोर्ट में तन्हा के ‘कथित इकबालिया बयान’ के तथ्यों का हवाला दिया था, जो आधिकारिक केस रिकॉर्ड का एक हिस्सा था और चैनलों ने स्वतंत्रता और निष्पक्ष जांच के अधिकार के प्रति पूर्वाग्रह पैदा किया और उसे मीडिया ट्रायल के लिए इस्तेमाल किया।
वहीं तन्हा के वकील सिद्धार्थ अग्रवाल ने 18 अगस्त, 2020 को प्रसारित ज़ी रिपोर्ट का हवाला दिया और कहा कि यह रिपोर्ट उस खुलासे पर आधारित है जिसमें आरोप लगाया गया था कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र आसिफ ने दिल्ली में बसों में आग लगा दी थी और उसने दंगों में सक्रिय रूप से भाग लिया था।
हालांकि इकबालिया बयान पर किसी भी अदालत में भरोसा नहीं किया जाएगा, लेकिन उनकी समस्या यह है कि कोर्ट में आने से पहले यह लीक हो गया। तन्हा ने कथित रूप से हिंसक समाचार रिपोर्टों को हटाने और इस पर एक निष्पक्ष जांच के लिए प्रार्थना की है कि आखिर किस तरह यह जानकारी लीक हो गई।
उनके वकील ने कहा कि 15 अक्टूबर, 2020 को दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिस को स्रोत का खुलासा करने का निर्देश दिया था। हालांकि, इस आदेश के अनुपालन में उन्होंने (पुलिस) इस साल 16 जनवरी को केवल एक हलफनामा दायर किया, जिसमें कहा गया कि लीकेज के आरोप “असंबद्ध” थे।
पुलिस को केवल अपने लोगों को बचाने की चिंता-
तन्हा के वकील सिद्धार्थ अग्रवाल ने कहा कि समाचार चैनल द्वारा प्रसारण का उद्देश्य तन्हा की छवि धूमिल करना था। उन्होंने
पुलिस के आचरण पर भी सवालिया निशान खड़ा किया कि यदि दिल्ली पुलिस ईमानदार, पारदर्शी होती और अपना इरादा दिखाया होता, तो यह एक ऐसी एजेंसी हो सकती है जिस पर भरोसा किया जा सकता है, लेकिन उसे केवल अपने लोगों को बचाने की चिंता है। इसलिए उसी एजेंसी द्वारा एक और जांच का कोई फायदा नहीं होगा। उन्होंने मामले की स्वतंत्र जांच की प्रार्थना की।
दिल्ली पुलिस ने अपने हलफनामे में कहा कि उसने पूरी केस फाइल दिल्ली सरकार और गृह मंत्रालय को भेज दी थी। अदालत ने जिस तरह से पूछताछ की गई उस पर भी असंतोष जाहिर किया।
लीक किसने की पता लगाना होगा-
अदालत ने पुलिस को आरोपी के इकबालिया बयान के लीक होने की सतर्कता जांच रिपोर्ट दायर करने का निर्देश दिया था। हाईकोर्ट ने कहा कि अगर सतर्कता जांच यह पता लगाने में असमर्थ है कि क्या हुआ, तो कठोर आदेश पारित किए जाएंगे और पुलिस को यह पता लगाना होगा कि लीक कहां से हुआ था।
जज ने कहा, ‘सतर्कता जांच रिपोर्ट कहती है कि आरोप के संबंध में सबूत नही हैं। नहीं, आरोप पुष्ट हैं। आपको पता लगाना था कि यह किसने किया है’।
दंगों की साजिश का आरोप-
जामिया के छात्र आसिफ इकबाल तनहा को पिछले साल उत्तर पूर्व दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा से संबंधित एक मामले में मई 2020 में गिरफ्तार किया गया था।
तन्हा फिलहाल जेल में हैं। पुलिस ने कहा था कि शाहीन बाग में अबुल फजल एन्क्लेव के रहने वाले तन्हा स्टूडेंट इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन के सदस्य थे और जामिया कोऑर्डिनेशन कमेटी का हिस्सा थे, जिसने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था।
पिछले साल 24 फरवरी, 2020 को उत्तर पूर्वी दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून के समर्थकों और प्रदर्शनकारियों के बीच सांप्रदायिक हिंसा हुई थी। दंगों/हिंसा में करीब 53 लोग मारे गए थे और लगभग 200 लोग घायल हो गए थे।
यूएपीए में बंद-
24 साल के आसिफ इकबाल तन्हा की दिल्ली पुलिस ने दिल्ली दंगों के षड्यंत्र वाली एफआईआर नंबर 59 में यूएपीए की धाराओं के तहत मई 2020 में गिरफ़्तारी की थी। उसे फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा के सिलसिले में ”गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था।