IPS अफसर ने नारे लगा कर जान बचाई।
IPS अफसर तक डर जाए तो लालकिले को भला कौन बचा सकता था।
कमिश्नर की काबिलियत की पोल खुली।
पुलिस के डर को संयम बता रहे हैं।
नाकामी छिपाने के लिए घायलों का सहारा।
सत्ता की लठैत बनी पुलिस फुफकारी नहीं तो मर जाएगी।
जब तक कमिश्नर और आईपीएस सत्ता के लठैत बने रहेंगे मातहत पुलिस इसी तरह पिटती रहेगी।
इंद्र वशिष्ठ
लालकिले पर कुछ किसानों द्वारा कब्जा और झंडे फहराए जाना शर्मनाक हैं।
किसानों और पुलिस की झड़प में 394 पुलिस वाले घायल हुए हैं। हालांकि किसान भी घायल हुए हैं।
यह सब शर्मनाक तो है ही लेकिन इसके लिए पूरी तरह दिल्ली पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव जिम्मेदार हैं। कमिश्नर की यह सबसे बड़ी विफलता हैं तो जाहिर सी बात हैं कि यह गृहमंत्री अमित शाह की भी नाकामी है।
कमिश्नर का अनाड़ीपन जिम्मेदार-
कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव ने कहा कि पुलिस ने संयम रखा। पुलिस के पास सभी विकल्प (ऑप्शन) थे लेकिन पुलिस ने संयम का रास्ता चुना क्योंकि हम जान माल का नुकसान नहीं चाहते थे।
सच्चाई यह है कि पुलिस के पास कोई विकल्प था ही। कमिश्नर के गैर पेशेवर रवैये,अनाड़ीपन और नासमझी के कारण ही पुलिस वाले पिट गए और लालकिले पर कुछ किसानों ने कब्जा किया।
आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की-
कमिश्नर ने खुद बताया कि उन्हें पहले दिन ही पता चल गया था कि आंदोलन की कमान आतंकियों के हाथों में चली गई है इसके बावजूद कमिश्नर ने ट्रैक्टर परेड को रद्द नहीं किया। सुरक्षा व्यवस्था भी कड़ी क्यों नहीं की गई। कमिश्नर की बात सच मान लें कि आंदोलन में आतंकी शामिल थे तो फिर पुलिस ने उनके खिलाफ अपने सभी विकल्पोंं का इस्तेमाल क्यों नहीं किया। आतंकियों के खिलाफ विकल्प इस्तेमाल करने से क्या उन्हें किसे ने रोका था ?
नाकामी छिपाने के लिए घायलों का सहारा-
पुलिस द्वारा अब अपने घायल पुलिस वालों का इस तरह प्रचार किया जा रहा है कि जैसे उन्होंने बहुत ही बहादुरी का काम किया है। सच्चाई यह है। पुलिस कमिश्नर के सही कदम न उठाने का खामियाजा इन पुलिस कर्मियों को भुगतना पड़ा है। जब तक कमिश्नर और आईपीएस सत्ता के लठैत बने रहेंगे मातहत पुलिस इसी तरह पिटती रहेंगी।
आईपीएस ने नारे लगा कर जान बचाई-
कमिश्नर अपनी नाकामी और विफलता को छिपाने के लिए अब यह सब कह या कर रहे हैं।
सच्चाई यह है कि कमिश्नर ने पुलिस को ऐसी खराब स्थिति में पहुंचा दिया था कि उसके पास अपनी जान बचाने के लाले पड़ गए थे। आईपीएस अफसरों तक को अपनी जान बचाने के लिए नारों को ही हथियार के रुप में इस्तेमाल करना पड़ा।
ये हम लोगों के ऊपर से जाएंगे-
पुलिस के जवान ही नहीं आईपीएस अफसर तक कितने डरे, सहमे और असहाय थे। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उत्तरी क्षेत्र के संयुक्त पुलिस आयुक्त सुरेंद्र सिंह यादव ने पुलिस के जवानों से कहा कि ‘शांति से इनको (किसानों) समझाओ वरना ये हम लोगों के ऊपर से जाएंगे’। इसके साथ ही यादव ने जय जवान, जय किसान के नारे लगाए और मातहतों ने भी नारे लगाए।
संयुक्त पुलिस आयुक्त एस एस यादव का नारे लगाता हुआ वीडियो पुलिस कमिश्नर के गैर पेशेवर रवैये, काबलियत की पोल खोलने के लिए काफी है। इससे पता चलता है कि कमिश्नर ने अपने जवानों और दिल्ली के लोगों की जान को खतरे में डाल दिया था।
इससे यह साफ पता चलता है कि पुलिस बल कितना डरा हुआ था। इसके लिए पूरी तरह से कमिश्नर जिम्मेदार है।
पुलिस बल को मौके की नजाकत या गंभीरता के आधार पर कार्रवाई करने का अधिकार होता है। लालकिले पर हमला हुआ, पुलिस के जवानों ने लालकिले की खाई में कूद कर अपनी जान बचाई। इसके बावजूद पुलिस कमिश्नर यह कह कर अपनी पीठ थपथपा रहें है कि हमने संयम से काम लिया। यह सिर्फ़ पुलिस की नाकामी को छिपाने की कोशिश है।
सच्चाई यह हैं कि इस तरह की स्थिति से निपटने के लिए पुलिस की कोई तैयारी नहीं थी। इस मामले से कमिश्नर की पेशेवर काबिलियत की पोल खुल गई है।
मातहतों और लोगों की जान से खिलवाड़-
यदि कमिश्नर की बात पर यकीन भी कर लें तो सबसे बड़ा सवाल यह ही उठता है कि यह जानते हुए भी कि आंदोलन मिलिटेंट के हाथों में चला गया तो उन्होंने परेड को रद्द न कर अपने पुलिस वालों और आम लोगों की जान को जान बूझकर खतरे में क्यों डाल दिया। एक तरह से कमिश्नर की इस हरकत के कारण ही वह कथित मिलिटेंट लालकिले पर कब्जा कर झंडा फहराने में सफल हो गए। वैसे झंडा फहराने वालों में पंजाब का फिल्म कलाकार दीप सिद्दू भी शामिल था। दीप सिद्दू की प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह, भाजपा सांसद सन्नी देओल और हेमामालिनी के साथ की तस्वींरें वायरल हुई हैं।
आंसूगैस ही नहीं लाठीचार्ज भी किया-
पुलिस कमिश्नर ने कहा कि पुलिस ने संयम रखा और सिर्फ आंसूगैस का इस्तेमाल किया गया है। जबकि सच्चाई यह है कि ऐसे अनेक वायरल वीडियो मीडिया में सामने आए हैं जिनमे साफ पता चलता है कि जहां पर किसान कम संख्या में थे वहां पुलिस ने उन पर लाठियां बरसाई। दूसरी ओर जहां पुलिस कम थी वहां किसानों ने उन पर हमला किया। लालकिले पर किसानों की संख्या बहुत ज्यादा थी इसलिए पुलिस चुपचाप बैठी रही। इसी लिए किसान लालकिले पर कब्जा कर झंडा फहराने में सफल हो गए। पुलिस कमिश्नर ने यदि अपने कर्तव्य का ईमानदारी से पालन किया होता तो लालकिले की शर्मनाक घटना नहीं होती।
(ये लेखक के खबरों पर आधारित उनका शोध और रिपोर्ट है। संपादक का उससे सहमत होना अनिवार्य नहीं है।)