सुपरदारी में भ्रष्टाचार का बोलबाला।
इंद्र वशिष्ठ
पुलिस आपराधिक मामलों के आरोपी से रिश्वत लेना तो शायद अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझती ही है। लेकिन कुछ पुलिस वाले तो शिकायतकर्ता/ पीड़ित व्यक्ति से भी पैसा वसूलने में जुटे रहते हैंं।
दिल्ली पुलिस में भ्रष्टाचार कितने चरम पर है और भ्रष्टाचारी कितने बेशर्म, दुस्साहसी और निरंकुश हो गए हैंं ? इसका अंदाजा इस मामले से भी लगाया जा सकता हैं।
बीस लाख के मोबाइल-
मोबाइल फोन के एक कारोबारी से व्यापारी बन कर एक व्यक्ति ने लाखों रुपए मूल्य के मोबाइल फोनों का सौदा किया। कारोबारी अपनी कार में फोन लेकर डिलीवरी देने पहाड़ गंज इलाके में गया।
कारोबारी से उस व्यक्ति ने लगभग बीस लाख रुपए के मोबाइल फोन लेकर अपनी कार में रखवा लिए और कारोबारी से कहा, कि मैं आपकी कार में चलता हूं। कारोबारी की कार में बैठने के दौरान, वह बोला कि पेशाब करके आता हूं , लेकिन वह भाग गया। मोबाइल फोन उसके साथी दूसरी कार में ले कर भाग गए।
लुटे पिटे कारोबारी ने अपने आईपीएस रिश्तेदार को सारी बात बताई। उस आईपीएस ने अपने बैचमेट मध्य जिले के तत्कालीन डीसीपी जसमीत सिंह को सारा मामला बताया।
कारोबारी की शिकायत पर पहाड़ गंज थाने में मामला दर्ज किया गया।
तीन लाख रिश्वत मांगी-
एक दिन डीसीपी जसमीत सिंह को बैचमेट ने फोन किया, बताया कि माल (मोबाइल फोन) तो पुलिस ने बरामद कर लिया है, लेकिन उसे छुडवाने यानी सुपरदारी पर दिलवाने के लिए पुलिस तीन लाख रुपए मांग रही है। मामले का जांच अधिकारी खुद तो सामने नहीं आता है, लेकिन कोई अमित पैसा मांग रहा है।
बैचमेट ने कहा कि “इतने पैसे तो नहीं हो पाएंगे, मैं कुछ कर दूंगा ” यानी कारोबारी कुछ पैसा पुलिस को दे देगा।
डीसीपी को यह सुनते ही झटका लगा, उन्होंने बैचमेट से कहा, कि तुम कैसी बात कर रहे हो यह सुनकर तो मुझे शर्म आ रही है, क्योंकि एसएचओ को मालूम है कि यह डीसीपी के द्वारा दर्ज कराया मामला है। इसके बावजूद ऐसी हरकत की है।
कार्रवाई-
डीसीपी जसमीत सिंह ने तत्कालीन एसएचओ विशुद्धानन्द झा को फटकार लगाई कि पुलिस वाले इतने दुस्साहसी हो गए, यह जानते हुए भी कि मामला डीसीपी की जानकारी में है, फिर भी रिश्वत मांग रहे हैं।
डीसीपी ने सिपाही अमित कुमार को लाइन हाजिर किया। सिपाही अमित का बाद में तबादला भी पहाड़ गंज थाने से आईपी एस्टेट थाने में कर दिया गया।
सुपरदारी-
किसी भी मामले में पुलिस जब कोई नगदी/सामान/वाहन आदि बरामद/ जब्त/जमा करती है तो उसका मालिक उसे वापस पाने के लिए अदालत में अर्जी लगाता है जिस पर अदालत एसएचओ/जांच अधिकारी से रिपोर्ट मांगती है। उस रिपोर्ट के आधार पर अदालत मालिक को उसका सामान सुपरदारी पर सौंप देने का आदेश पुलिस को देती है। हालांकि मामले की सुनवाई के दौरान जरूरत होने पर मालिक को वह सामान अदालत में पेश करना होता है।
यह जग जाहिर है कि बिना रिश्वत लिए जांच अधिकारी सुपरदारी का काम भी नहीं करता। यहीं नहीं, थाने का मालखाना इंचार्ज भी मालिक को उसका सामान सौंपने की एवज में पैसे वसूलता है।
एसएचओ निलंबित क्यों नहीं किया?-
इस मामले के कुछ दिन बाद ही पहाड़ गंज के तत्कालीन एसएचओ विशुद्धानन्द झा को 19 अगस्त 2021 को लाइन हाजिर किया गया और सिपाही अमित कुमार को नौकरी से बर्खास्त किया गया है। इलाके में संगठित अपराध करने वालों को शह देने / मिलीभगत के आरोप में यह कार्रवाई की गई। पुलिस की मिलीभगत से संगठित अपराध हो रहा था तो एसएचओ को निलंबित क्यों नहीं किया गया?
14 अगस्त 2021 को दो सट्टेबाजों में गोलियां चल गई थी। इस मामले में एक सट्टेबाज से सिपाही अमित की सांठगांठ पाई गई। सिपाही अमित का आईपी एस्टेट थाने में तबादला कर दिया गया था। इसके बावजूद उसकी पहाड़ गंज इलाके में सट्टेबाजों और बार वालों से सांठगांठ थी।
भ्रष्टाचार का बोलबाला-
अवैध शराब का धंधा, सट्टेबाजी, अवैध पार्किंग, सड़कों पर अतिक्रमण करके किए जाने वाले काम धंधे, अवैध निर्माण, विवादित संपत्ति ,पैसे के लेन देन के विवाद के मामले आदि भी पुलिस की कमाई का सबसे बड़ा जरिया माने जाते हैं। इसी वजह से पुलिस में भ्रष्टाचार का बोलबाला है।कमिश्नर अगर वाकई पुलिस में कोई सुधार करना चाहते हैं तो उन्हें इस जड़ पर ही वार करना चाहिए।