दिल्ली दंगे : पूर्व जजों की रिपोर्ट में पुलिस, सरकार और बिकाऊ मीडिया पर गंभीर सवाल
– फ़रवरी 2020 में दिल्ली के उत्तरपूर्वी इलाक़े में सांप्रदायिक दंगे हुए थे जिनमें 53 लोग मारे गए. मरने वालों में 40 मुसलमान और 13 हिंदू ।
– योगेश भारद्वाज
नई दिल्ली : दिल्ली दंगे 2020: पूर्व जजों की रिपोर्ट में पुलिस, सरकार और बिकाऊ मीडिया पर गंभीर सवाल उठाये गए है जिससे साफ पता लगता है। कि अंग्रेजों की नीति पर आज काले अंग्रेज फिर इस देश को चैन से जीने नही देना चाहते। सत्ता किस तरह से पुलिस का इस्तेमाल अपने पक्ष के लिए करती है। इसका यह दंगे एक और उदाहरण है। रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस की जाँच पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
इस रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस के अलावा, केंद्रीय गृहमंत्रालय, दिल्ली सरकार और मीडिया की भूमिका पर भी कई सख़्त टिप्पणी की गईं हैं। फ़रवरी 2020 में दिल्ली के उत्तरपूर्वी इलाक़े में सांप्रदायिक दंगे हुए थे जिनमें 53 लोग मारे गए. मरने वालों में 40 मुसलमान और 13 हिंदू थे।
“दिल्ली दंगों से पहले जानबूझकर नफरत का माहौल बनाया गया। मीडिया ने आग को और भड़काने का काम किया। पुलिस ने नाजायज़ तरीके से UAPA का इस्तेमाल किया।”
पांच पूर्व न्यायाधीशों ने दिल्ली दंगों पर अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। इस कमेटी के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन बी लोकुर हैं।
रिपोर्ट कहती है, दिल्ली दंगे में दिल्ली पुलिस, गृह मंत्रालय, सरकार और नफ़रती मीडिया की प्रमुख भूमिका रही। दंगे भड़कने से पहले नफ़रती माहौल बनाया गया। इसके लिए मीडिया का इस्तेमाल हुआ। दंगे के बाद सही तरीक़े से जांच नहीं की गई। कुछ लोगों को जेल में डालने के लिए ग़लत धाराओं का इस्तेमाल किया गया।
समिति ने कहा है कि नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध 2019 से ही किया जा रहा था। मुस्लिम अपनी नागरिकता छिन जाने के डर से विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। इसी बीच विधानसभा चुनाव ने जोर पकड़ा और जानबूझकर नफ़रती बयान दिए गए। अनुराग ठाकुर और कपिल मिश्रा जैसे नेताओं ने सार्वजनिक मंचों से मुसलमानों को गद्दार कहना शुरू किया।
इस रिपोर्ट में दंगों के बाद दर्ज हुए केस की जाँच को लेकर दिल्ली पुलिस पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं.
दिल्ली के अलग-अलग थानों में इन दंगों से जुड़े क़रीब साढ़े सात सौ केस दर्ज किए गए थे।
पुलिस ने 1700 से ज़्यादा लोगों को गिरफ़्तार भी किया था.
कमेटी का कहना है कि पुलिस ने उन लोगों की कोई जाँच नहीं की जिन्होंने दंगों से पहले हेट-स्पीच दी और लोगों को हिंसा के लिए उकसाया।
कमेटी ने यूएपीए के तहत दर्ज किए मामलों और आईपीसी की धाराओं के तहत दर्ज किए गए मामलों का अलग-अलग अध्ययन किया है।
आपको याद होगा कि हेट स्पीच देने वालों के लिए सरकार संरक्षक बनकर खड़ी रही। उनपर कार्रवाई का आदेश देने वाले जज का रातोंरात तबादला कर दिया गया था। “गोली मारो…’ वाला नारा लगाने वालों को सम्मान मिला देश की सरकार, देश की संस्थाएं और बिकाऊ मीडिया उर्फ चौथा खंभा मिलकर देश के खिलाफ षडयंत्र करते हैं और आपको राष्ट्रवाद की घुट्टी पिलाते हैं। उस दंगे में मुसलमान भी मारे गए और हिंदू भी। उससे मुसलमानों का भला हुआ या हिंदुओं का?
देश को अब समझ जाना चाहिए कि ‘खून में व्यापार’ लेकर घूम रहे नफरत के सौदागर न मुसलमान विरोधी हैं, न हिंदुओं के हितैषी। वे सत्तापिपासु लोग हैं जो अपनी कुर्सी के लिए कुछ भी कर डालेंगे।