अपराधदिल्ली

डीसीपी संजय कुमार सहरावत निलंबित

डीसीपी संजय कुमार सहरावत निलंबित ।
इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली पुलिस के डीसीपी संजय कुमार सहरावत को निलंबित कर दिया गया है।
संजय पर आरोप है कि उसने पुलिस अफसर की नौकरी पाने के लिए जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल किया था।
सीबीआई ने हाल ही में इस मामले में संजय कुमार सहरावत के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया है।
सीबीआई ने आरोप पत्र दाखिल करने की जानकारी दिल्ली पुलिस मुख्यालय को दी। पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना ने  डीसीपी संजय कुमार सहरावत के खिलाफ विभागीय कार्रवाई के लिए दिल्ली सरकार को फाइल भेज दी।
दिल्ली के मुख्य सचिव नरेश कुमार ने दस जून 2022 को डीसीपी संजय कुमार को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने का आदेश जारी कर दिया।
संजय कुमार इस समय दिल्ली सशस्त्र पुलिस की दूसरी बटालियन में डीसीपी के पद पर तैनात थे।
संजय कुमार सहरावत दानिप्स सेवा (दिल्ली अंडमान निकोबार द्वीपसमूह ) के 2009 बैच का अफसर है।
जालसाजी,धोखाधड़ी का मामला दर्ज-
सीबीआई ने पूर्वी जिले के तत्कालीन एडिशनल डीसीपी संजय कुमार सहरावत के खिलाफ 7 सितंबर 2020 को भारतीय दंड संहिता की धारा 419/420/467/468/471 के तहत जालसाजी और धोखाधड़ी आदि का मुकदमा (आरसी/एफआईआर) दर्ज किया था।
सीबीआई प्रवक्ता आर के गौड ने बताया कि आरोप है कि संजय ने पुलिस अफसर की नौकरी पाने के लिए जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल किया था।
2018 में शिकायत दी –
देश की तेजतर्रार जांच एजेंसी सीबीआई ने  संजय कुमार सहरावत के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने में ही ढाई साल लगा दिए थे।
सीबीआई द्वारा दर्ज आरसी/एफआईआर में ही लिखा है कि इस मामले की शिकायत 14 मार्च 2018 को सीबीआई को प्राप्त हुई थी।
करीब ढाई साल बाद सीबीआई ने पाया कि इस शिकायत में दी गई सूचना से जालसाजी और धोखाधड़ी का अपराध होने का पता चलता है। इसलिए मुकदमा आरसी/एफआईआर दर्ज कर तफ्तीश की जानी चाहिए।
नौकरी पाने के लिए इस्तेमाल किए गए दस्तावेजों को बरामद करने के लिए पूर्वी जिले के तत्कालीन एडिशनल डीसीपी संजय के पीतमपुरा और सिंघु गांव के घरों और दफ्तर में सीबीआई द्वारा तलाशी भी ली गई थी।
जालसाजी से पुलिस अफसर बना ? –
 संजय कुमार पर आरोप है कि उसने पुलिस अफसर की नौकरी पाने के लिए अपने समान नाम वाले व्यक्ति के जन्मतिथि और शैक्षणिक योग्यता प्रमाण पत्र आदि दस्तावेजों का इस्तेमाल किया था।
सीबीआई द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के अनुसार बहादुर गढ निवासी महावीर सिंह ने सीबीआई को दी शिकायत मेंं बताया कि एडशिनल डीसीपी संजय की असली जन्मतिथि   8 जुलाई 1977 है।
क्लर्क से पुलिस अफसर-
संजय कुमार 15 जुलाई 1998 को श्रम मंत्रालय में क्लर्क भर्ती हुआ था वहां उसकी जन्मतिथि 8 जुलाई 1977 ही लिखी हुई हैं। 4अक्टूबर 2007 को संजय ने क्लर्क की नौकरी से इस्तीफा दे दिया।
यूपीएससी के माध्यम से संजय का 6 जून 2009 को पुलिस मेंं दानिप्स सेवा में चयन हो गया।
एफआईआर के मुताबिक संजय अपनी असली जन्मतिथि के आधार पर यूपीएससी की परीक्षा में बैठने की उम्र सीमा पार कर चुका था। इसलिए उसने परीक्षा में शामिल होने के लिए 1 दिसंबर 1981 की गलत जन्म तिथि से आवेदन किया। इस गलत जन्म तिथि के आधार पर  यूपीएससी से आयु सीमा में छूट हासिल कर  वह परीक्षा में शामिल हो गया।
दशघरा का संजय कौन  है ?-
 पुलिस अफसर संजय ने जो जन्म तिथि और शिक्षा का प्रमाण पत्र इस्तेमाल किया, वह दिल्ली में दशघरा इलाके में डीडीए फ्लैट निवासी संजय कुमार का है। उस संजय के पिता का नाम भी ओम प्रकाश है। वह सुनार समुदाय का है।
 संजय सहरावत दिल्ली में सिंघु गांव का निवासी हैं।
मंत्रालय में जन्मतिथि प्रमाण पत्र नहीं-
एफआईआर में श्रम मंत्रालय का भी एक दस्तावेज हैं जिसके मुताबिक संजय कुमार ( जन्मतिथि 8 जुलाई 1977 ) 15 जुलाई 1998 को क्लर्क के पद भर्ती हुआ और 4 अक्टूबर 2007 नौकरी से इस्तीफा दे दिया। उसके निजी मिसल में जन्मतिथि संबंधित दस्तावेज उपलब्ध नहीं है सिर्फ़ ज्वाइनिंग रिपोर्ट है।
संजय की सेवा पुस्तिका महानिदेशालय में उपलब्ध नहीं होने के कारण क्लर्क संजय का फोटो चिपका पृष्ठ उपलब्ध नहीं करवाया जा सकता है। कॉमन सीनियरिटी लिस्ट में भी संजय कुमार का नाम और जन्मतिथि है। शिकायतकर्ता ने आरटीआई और अन्य माध्यम से जुटाई गई यह जानकारी शिकायत के साथ सीबीआई को दी है।
सीबीआई की भूमिका पर सवालिया निशान-
पुलिस अफसर संजय सहरावत पर लगाए गए आरोप बहुत ही गंभीर है। सीबीआई को तो इस मामले में शिकायत मिलते ही तुरंत  प्राथमिकता के आधार पर प्रारंभिक जांच/पीई और आरसी/ एफआईआर दर्ज कर तफ्तीश करनी चाहिए थी। क्योंकि इस मामले में आरोपी कोई सामान्य व्यक्ति नहीं बल्कि कानून का रखवाला पुलिस अफसर हैं। सीबीआई ने इस मामले की गंभीरता को समझने में जबरदस्त लापरवाही बरती या उसने जानबूझकर ऐसा किया है। दोनों ही सूरत में सीबीआई की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है।
इस मामले ने सीबीआई की भूमिका पर सवालिया निशान लगा दिया है।
सीबीआई के लिए चुटकियों का काम-
 सीबीआई इस मामले में तफ्तीश कर सच्चाई सामने लाने का जो काम चुटकियों में कर सकती थी उसने एफआईआर दर्ज करने में ही ढाई साल लगा दिए।
पुलिस या अन्य जांच एजेंसियों द्वारा शिकायत मिलने के बाद वर्षों तक एफआईआर तक दर्ज न करने से शिकायतकर्ता का मनोबल टूटता है वह हताश हो जाता है और जांच एजेंसियों से उसका भरोसा उठ जाता है। दूसरी ओर आरोपी बेखौफ हो जाता है और उसे  सबूतों को नष्ट करने का मौका मिल जाता है।
संजय सहरावत दिल्ली में सिंघु गांव का मूल निवासी हैं सीबीआई चाहती तो पहले ही गांव, स्कूल, कॉलेज के सहपाठियों, दोस्तों, रिश्तेदारों आदि से भी यह बात आसानी से पता लगा सकती थी कि संजय सहरावत का जन्म कब हुआ।
स्कूल, कॉलेज के रिकॉर्ड और प्रमाणपत्र आदि में भी जन्म तिथि होती है।
दो महीने में तीन बच्चे कैसे जन्मे ?-
संजय और उसके अन्य भाई बहन के जन्म के बीच में कितने साल या महीनों का अंतर है।
शिकायतकर्ता महावीर सिंह ने बताया  संजय सहरावत ने पुलिस अफसर बनने के लिए जन्म तिथि एक दिसंबर 1981बताई है जबकि उसके छोटे भाई की जन्म तिथि 5 फरवरी 1982 है और इनके बीच में इनकी एक बहन का भी जन्म हुआ है। क्या दो महीने में एक महिला तीन संतानों को जन्म दे सकती है ? इससे भी साफ पता चलता है कि संजय ने जालसाजी की है।
संजय ने पुलिस अफसर बनने से पहले करीब दस साल श्रम मंत्रालय में क्लर्क के रूप में नौकरी की थी या नहीं ?  यह सब पता लगाना भी सीबीआई के लिए क्या मुश्किल काम था।
दशघरा निवासी संजय के जन्मतिथि प्रमाणपत्र आदि की सत्यता का पता लगाना भी सीबीआई के लिए बहुत ही आसान काम था।

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