जहांगीर पुरी SHO को हटाया।
– इंद्र वशिष्ठ
जहांगीर पुरी के एसएचओ राजेश कुमार को हटा दिया गया है। इंस्पेक्टर अरुण कुमार को नया एसएचओ नियुक्त किया गया है।
जहांगीर पुरी में दंगों के बाद से ही पुलिस की भूमिका और पुलिस अफसरों की काबिलियत पर पर सवालिया निशान लग गया था।
आईपीएस पर कार्रवाई हो-
अब अदालत ने भी पुलिस की भूमिका पर जमकर सवाल उठाए हैं और वरिष्ठ पुलिस अफसरों की जवाबदेही तय करने को कहा है।
लेकिन अदालत की फटकार के बावजूद सिर्फ़ एसएचओ राजेश कुमार को हटाया जाना केवल खानापूर्ति ही लगती है। क्योंकि ऐसे मामलों में जिले के डीसीपी या अन्य आईपीएस अफसरों के खिलाफ भी कार्रवाई होनी चाहिए।
डीसीपी की बगल में दंगाई-
पुलिस की काबिलियत का आलम यह है अपराध शाखा ने सात मई को दंगे के मामले में जिस तबरेज अंसारी को गिरफ्तार किया है। उस तबरेज ने दंगों के बाद उत्तर पश्चिम जिले की डीसीपी उषा रंगनानी की बगल में बैठ कर अमन कमेटी की सभा को संबोधित किया और तिरंगा यात्रा में भी डीसीपी की बगल मौजूद था। तेजतर्रार पुलिस होने का दावा करने वाली पुलिस को यह भनक तक नहीं लगी कि डीसीपी की बगल में बैठा तबरेज दंगाई है।
यह उजागर होने पर पुलिस की किरकिरी हो रही हैं।
पुलिस पूरी तरह नाकाम रही-
रोहिणी की एक अदालत ने कहा कि दिल्ली पुलिस 16 अप्रैल को जहांगीरपुरी में हनुमान जयंती के बिना इजाजत निकले जुलूस को रोकने में पूरी तरह नाकाम रही। इस जुलूस के दौरान इलाके में सांप्रदायिक हिंसा भड़की थी।
विफलता को छिपाया-
रोहिणी अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश गगनदीप सिंह ने कहा कि जुलूस को रोकने में पुलिस की नाकामी/विफलता को छिपाया गया है।
अफसरों ने पूरी तरह नजरअंदाज किया-
अदालत ने कहा कि, ऐसा लगता है कि इस मुद्दे को पुलिस के वरिष्ठ अफसरों ने पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया है और अगर पुलिसकर्मियों की मिलीभगत थी, तो इसकी जांच करने की आवश्यकता है।
अफसरों की जवाबदेही तय हो-
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश गगनदीप सिंह ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि वरिष्ठ अधिकारियों ने इस मुद्दे को दरकिनार कर दिया है। संबंधित अधिकारियों पर जवाबदेही तय की जानी चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी कोई घटना न हो।
अदालत ने गैरकानूनी गतिविधियों को रोकने में पुलिस की भूमिका को ‘संतोषजनक नहीं’ बताते हुए कहा कि अगर उनकी कोई मिलीभगत है तो उसकी भी जांच की जानी चाहिए.’
अदालत ने निर्देश दिया कि सात मई को पारित आदेश की प्रति सूचना और उपचारात्मक अनुपालन के लिए पुलिस कमिश्नर को भेजी जाए।
भूमिका की जांच हो-
न्यायाधीश ने कहा, राज्य/पुलिस का यह स्वीकार करना सही है कि गुजर रहा अंतिम जुलूस गैरकानूनी था (जिस दौरान दंगे हुए) और इसके लिए पुलिस से पूर्व अनुमति नहीं ली गई थी।
अदालत ने कहा कि 16 अप्रैल को हनुमान जयंती पर हुए घटनाक्रम और दंगे रोकने तथा कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने में स्थानीय प्रशासन की भूमिका की जांच किए जाने की आवश्यकता है।
पुलिस अफसर साथ क्यों थे-
अदालत ने सवाल किया, स्थानीय पुलिस अधिकारी एक अवैध जुलूस को रोकने के बजाय उसके साथ क्यों जा रहे थे?
अदालत ने पूछा, ‘राज्य की ओर से यह स्पष्ट रूप से स्वीकार किया जाता है कि अंतिम जुलूस जो गुजर रहा था, जिसके दौरान दुर्भाग्यपूर्ण दंगे हुए थे, वह अवैध था और इसके लिए पुलिस की पूर्व अनुमति नहीं ली गई थी। अगर ऐसी स्थिति थी तो एफआईआर का विवरण/ब्यौरा ही बताता है कि थाना जहांगीरपुरी के पुलिस कर्मचारी, इंस्पेक्टर राजीव रंजन के नेतृत्व में और साथ ही डीसीपी रिजर्व के अन्य अधिकारी उक्त गैरकानूनी जुलूस को रोकने के बजाय उसके साथ चल रहे थे।’
अदालत ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि स्थानीय पुलिस शुरुआत में ही इस गैरकानूनी जुलूस को रोकने तथा भीड़ को तितर-बितर करने के बजाए पूरे रास्ते भर उनके साथ रही।
अदालत ने दंगे के सिलसिले में आठ आरोपियों को जमानत देने के लिए दी गईं कई याचिकाओं को खारिज करते हुए उपरोक्त बातें कही हैं।
जहांगीरपुरी में 16 अप्रैल को हनुमान
जयंती के अवसर पर निकाली गई शोभायात्रा के दौरान दो समुदायों के बीच झड़प हो गई थी, जिसमें आठ पुलिसकर्मी और एक स्थानीय निवासी घायल हो गया था।