पुरानी ताकत के साथ फिर गठन होगा दिल्ली नगर निगम का,दिल्ली सरकार के हो सकते है कम अधिकार
– पहले भी 6 महीने के लिए भंग हुआ था निगम
– योगेश भारद्वाज
नई दिल्ली : दिल्ली नगर निगम चुनावों की तारीख टलने से जहाँ राजनैतिक दलों में खलबली मच गई है। तो वही दूसरी और सभी के मन मे सवाल उठ गया है। आखिर में अब होगा क्या सोशल मीडिया पर तरह तरह के सवाल उठ रहे है। कोई कह रहा है कि चुनाव 6 महीने टल गई कोई साल कोई 2 साल की बात कर रहा है और कोई इसको केंद्र सरकार के अधीन होने की बात कर रहा है । लेकिन इन सबसे अलग हम कुछ तथ्य आपके सामने पेश कर रहे कि आखिर में क्या ये सब पहली बार हुआ है। नही इससे पहले भी निगम भंग किया जा चुका है। लेकिन इस बार तीनों नगर निगमों या फिर उनके विलय करने के बाद अस्तित्व में आने वाले नगर निगम से दिल्ली सरकार को पूरी तरह दूर रखने की संभावना जताई जा रही है। इस संबंध में नगर निगम अधिनियम (डीएमसी एक्ट) की 17 धाराओं का अधिकार दिल्ली सरकार से छीनकर केंद्र सरकार अपने अधीन ले सकती है। इन धाराओं के तहत कार्रवाई करने का पहले केंद्र सरकार के पास ही अधिकार था, मगर अक्तूबर 2009 में केंद्र ने इन धाराओं के तहत कार्रवाई करने का अधिकार दिल्ली सरकार को दे दिया था। इसके बाद से नगर निगम के कामकाज में दिल्ली सरकार का हस्तक्षेप बढ़ा है। लेकिन विशेषयो की माने तो चुनाव तो होंगे ही लेकिन कब यह केंद्र के आदेश के बाद ही तय होगा।
जब निगम को भंग कर दिया गया
मौजूदा निगम चुनाव को 6 महीने के लिए टाले जाने की मांग सत्तारूढ़ बीजेपी नेताओं की मांग नई नहीं है। क्योंकि निगम के इतिहास में इसके भंग होने का उल्लेख मिलता है। दिल्ली की पहली महापौर अरुणा आसफ अली चुनी गई थी। पहले निगम 24 मार्च 1975 को भंग कर दी गई थी. निगम की 5वीं अवधि के लिए चुनाव 12 जून 1977 को हुआ। 11 अप्रैल 1980 को गृह मंत्रालय के आदेश से निगम को 6 माह के लिए भंग कर दिया गया था और निगम अधिनियम के अंतर्गत निगम के सभी अधिकार निगमायुक्त को सौंप दिए जाने के बाद छह-छह महीने के लिए 5 बार बढ़ाया गया।
5 फरवरी 1983 को चुनाव होने के बाद निगम की छठी अवधि के लिए 28 फरवरी 1983 को विधिवत गठन किया गया. निगम का कार्यकाल फरवरी 1987 में खत्म होने के बाद इसे बढ़ाकर 6 जनवरी 1990 को भंग कर किया गया. इसके बाद 31 मार्च 1997 तक निगम में प्रशासक व विशेष अधिकारी नियुक्त रहे जिन्होंने निगम के कार्यों को पूरा किया।
भारत में नगरपालिका की वर्तमान व्यवस्था
पहले भारत में दो स्तर पर ही सरकारें हुआ करती थी – केंद्र और राज्य। लेकिन 1992 में शहरी स्थानीय स्वशासन की व्यवस्था की गई। नगरपालिका शहरी स्थानीय स्वशासन ही है;
1992 में संविधान में जिस प्रकार 73वां संशोधन करके स्थानीय शासन (Local government) के तहत पंचायती राज व्यवस्था को लाया गया उसी प्रकार 1992 में ही एक और संशोधन हुआ यानी कि 74वां संविधान संशोधन और उसी के अंतर्गत शहरी स्थानीय स्वशासन (Urban local self-government) की व्यवस्था की गई।
आजादी के बाद तेजी से बढ़ते शहरों ने शहरी स्वशासन की जरूरत को बढ़ाया लेकिन संविधान में चूंकि ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी इसीलिए संविधान संशोधन करके इस व्यवस्था को इसमें डाला गया। यहाँ ये जान लेना जरूरी है कि शहर क्या होता है? दरअसल शहर उसे कहते है जहां के 75% या उससे अधिक जनसंख्या वर्ग (पुरुष) गैर -कृषि कार्यों में संलग्न होने रहते हैं।
संशोधन के द्वारा संविधान में एक नया भाग 9 ‘क’ शामिल किया गया जिसके तहत अनुच्छेद 243P से लेकर 243ZG तक शहरी स्वशासन के प्रावधानों को सम्मिलित किया गया और इस पूरे चैप्टर को ”नगरपालिकाएं (Municipalities)” नाम दिया गया।
यहाँ पर ये याद रखिए कि इसी अनुच्छेद के 243A से लेकर अनुच्छेद 243O तक पंचायती राज व्यवस्था का प्रावधान किया गया है। तो कुल मिलाकर शहरी शासन का मतलब है शहरी क्षेत्र के लोगों द्वारा चुने प्रतिनिधियों से बनी सरकार। ये जो चुने हुए शहरी सरकार होते हैं उसका अधिकार क्षेत्र शहर में कितना होगा ये उस राज्य के सरकार द्वारा तय किया जाता है।
12वीं अनुसूची में वर्णित विषय
इसमें नगरपालिकों के कार्य क्षेत्र के साथ 18 क्रियाशील विषयवस्तु समाहित हैं:
1.शहरी योजना जिसमें नगर की योजना भी शामिल है,
2. भूमि उपयोग का विनियमन और भवनों का निर्माण
3. आर्थिक एवं सामाजिक विकास योजना
4. सड़कें एवं पुल,
5. घरलु, औद्योगिक एवं वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए जल प्रदाय
6. लोक स्वास्थ्य स्वच्छता सफाई और कूड़ा-कर्कट प्रबंच,
7. अग्निशामन सेवाएँ
8. नगर वानिकी, पर्यावरण संरक्षण एवं पारिस्थितिकी आयामों की अभिवृद्धि,
9. समाज के कमजोर वर्गों के हितों का संरक्षण, जिनमें मानसिक रोगी व विकलांग रोगी शामिल है,
10. झुग्गी-झोपरियों में सुधार,
11. शहरी निर्धनता उन्मूलन,
12. नगरीय सुख-सुवधाओं जैसे पार्क, उद्यान, खेल के मैदानों की व्यवस्था,
13. सांस्कृतिक, शैक्षिक व सौन्दर्य पक्ष में अभिवृद्धि,
14. शवाधान, दाहक्रिया और विद्युत शवगृह,
15. पशुओं के प्रति क्रूरता पर रोक लगाना,
16. जन्म व मृत्यु से संबन्धित महत्वपूर्ण सांख्यिकी,
17. जन सुविधाएं जिनमें मार्गों पर विद्युत व्यवस्था, बस स्टैंड तथा जन सुविधाएं सम्मिलित है,
18. वधशालाओं एवं चर्म शोधशाखाओं का विनियमन।