कश्मीर में आईएएस,डीएम ने जालसाजी से बना दिए बंदूकों के तीन लाख लाइसेंस।
सीबीआई ने 41 स्थानों पर छापेमारी की ।
इंद्र वशिष्ठ
जम्मू एवं कश्मीर में आईएएस,डीएम,एडीएम ने बंदूकों के करीब तीन लाख लाइसेंस अवैध तरीक़े से बना दिए। इन अफसरों ने ऐसे लोगों के भी बंदूक के लाइसेंस बना दिए जो दूसरे राज्यों के निवासी हैं।
सीबीआई ने बंदूकों के लाइसेंस कांड की जांच के सिलसिले में मंगलवार को लगभग 41 स्थानों पर तलाशी ली।
सीबीआई प्रवक्ता आर सी जोशी बताया कि शस्त्र लाइसेंस मामले की जारी जांच में श्रीनगर, अनन्तनाग, बनिहाल, बारामूला, जम्मू, डोडा, राजौरी, किश्तवार (जम्मू एवं कश्मीर), लेह, दिल्ली एवं भिण्ड (मध्य प्रदेश) सहित लगभग 41 स्थानों पर स्थित तत्कालीन जिला अधिकारी (आईएएस/केएएस), डीआईओ, क्लर्क आदि सहित लगभग 14 तत्कालीन अफसरों/ कर्मचारियों, 5 बिचौलियों/एजेन्ट, 10 गन हाऊस डीलरों के कार्यालय एवं आवासीय परिसरों में आज तलाशी ली गई।
तलाशी के दौरान, जारी शस्त्र लाइसेन्स के दस्तावेज, लाइसेंस बनवाने वाले लाभार्थियों की सूची, सावधि जमा में निवेश से सम्बन्धित दस्तावेज एवं अन्य बिक्री प्राप्तियॉ, सम्पत्ति के दस्तावेज, बैंक खाता विवरण, लॉकर की चाबियाँ, आपत्तिजनक विवरणों से भरी डायरी, शस्त्र लाइसेन्स रजिस्टर, इलेक्ट्रानिक यंत्र/मोबाइल फोन तथा चलन से बाहर किए जा चुकी पुरानी मुद्रा/ नोट सहित कुछ नकद, आपत्तिजनक दस्तावेज आदि बरामद हुए।
उप-राज्यपाल के पूर्व सलाहकार के यहां छापेमारी
जम्मू कश्मीर के उप-राज्यपाल के पूर्व सलाहकार एवं पूर्व आईएएस अफसर बशीर अहमद खान के घर भी तलाशी ली गई।
सीबीआई ने गृह मंत्रालय को बताया कि खान इस मामले में अभियुक्त है तब 4 अक्टूबर को खान को सलाहकार के पद से हटाया गया। गुलमर्ग जमीन घोटाला मामले में भी खान के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया जा चुका है इसके बावजूद बशीर अहमद खान उप-राज्यपाल के सलाहकार पद पर बने रहे थे। बशीर अहमद खान कई जिलों में मैजिस्ट्रेट रहे थे।
इसके अलावा जनजातीय मामलों के सचिव आईएएस शाहिद इकबाल चौधरी के परिसर में भी तलाशी ली गई। वह 6 जिलों में मैजिस्ट्रेट रह चुके हैं।
पहले भी छापेमारी-
सीबीआई द्वारा इस मामले में इस साल 24 जुलाई को भी जम्मू ,श्रीनगर, उधमपुर, रजौरी, अनंतनाग, बारामूला, दिल्ली समेत 40 स्थानों पर छापेमारी की गई। लाइसेंस बनाने वाले आईएएस, केएएस अफसरों, तत्कालीन डीएम, एडीएम और बीस हथियार विक्रेताओं के घर और दफ्तरों में यह छापेमारी की गई थी।
तीन लाख लाइसेंस अवैध –
सीबीआई ने जम्मू कश्मीर सरकार के अनुरोध पर दो मामले दर्ज किए थे। बड़े पैमाने पर बंदूक लाइसेंस जारी करने के मामले में जम्मू और कश्मीर के सतर्कता संगठन के थानों में साल 2018 में दर्ज किए गए दो मामलों की जांच सीबीआई ने अपने हाथों में ली थी।
आरोप है कि साल 2012 से 2016 के दौरान दो लाख अठहत्तर हजार से ज्यादा बंदूक के लाइसेंस गैरकानूनी तरीके से बनाए गए।
सीबीआई को जांच के दौरान मिले दस्तावेजों से पता चला कि जम्मू और कश्मीर के 22 जिलों में अवैध तरीके से बंदूकों के यह लाइसेंस बनाए गए हैं।
दूसरे राज्यों के निवासियों के लाइसेंस-
सीबीआई ने दस्तावेजों की छानबीन और जांच के दौरान पाया कि संबंधित जिलों के तत्कालीन डीएम, एडीएम समेत अन्य अफसरों और हथियार विक्रेताओं की सांठगांठ से अयोग्य ल़ोगों के भी लाइसेंस बना दिए गए। ऐसे लोगों ने लाइसेंस बनवाने के लिए अपने निवास का जो पता दिया था उस पर वह रहते ही नहीं थे।
आईएएस के छापेमारी-
सीबीआई ने जिन अफसरों के यहां छापेमारी की उनमें कठुआ, रियासी और उधमपुर के तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट आईएएस शाहिद इकबाल चौधरी और नीरज कुमार भी शामिल है। कश्मीर कैडर के शाहिद और नीरज आईएएस के क्रमशः 2009 और 2010 बैच के अफसर हैंं।
जम्मू कश्मीर में पांच साल की अवधि के दौरान बंदूकों के कुल करीब साढ़े चार लाख लाइसेंस बनाए गए थे।
दो आईएएस गिरफ्तार-
सीबीआई ने इस मामले में मार्च 2020 में कुपवाडा के तत्कालीन डीएम आईएएस राजीव रंजन और आईएएस इतरत हुसैन रफीकी को गिरफ्तार किया था।
राजस्थान में हुआ खुलासा-
राजस्थान पुलिस के आतंकवाद निरोधी दस्ते यानी एटीएस ने अक्टूबर 2017 में पहली बार हथियार लाइसेंस कांड का खुलासा किया था, जब उन्हें बदमाशों के पास से जम्मू-कश्मीर के नौकरशाहों द्वारा जारी किए हथियारों के लाइसेंस मिले थे। एटीएस ने यह भी पाया था कि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर सेना के जवानों के नाम पर 3,000 से अधिक लाइसेंस दिए गए थे।
आईएएस का भाई गिरफ्तार-
इस मामले में आईएएस राजीव रंजन के भाई ज्योति रंजन समेत पचास से ज्यादा अभियुक्तों को राजस्थान पुलिस ने गिरफ्तार किया था। ज्योति रंजन इस गिरोह से पैसे लेकर अपने भाई से लाइसेंस बनवाता। राजस्थान पुलिस ने उसी समय इस मामले की सीबीआई जांच की सिफारिश की थी।
उस दौरान जम्मू-कश्मीर में तत्कालीन पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी-बीजेपी सरकार पर सतर्कता जाँच की आड़ में आरोपियों को बचाने की कोशिश करने का आरोप लगाया गया था।
2018 में राज्यपाल शासन लागू होने के बाद तत्कालीन राज्यपाल एनएन वोहरा ने मामले को सीबीआई को सौंप दिया था।