भाजपा का वो नेता जिसकी केजरीवाल भी करते है तारीफ़, भाजपा दे सकती है डॉ हर्षवर्धन को बड़ी जिम्मेदारी
– योगेश भारद्वाज
नई दिल्ली : कहते है राजनीती में कुछ भी स्थिर नहीं होता है। और राजनीति कभी भी पलटा खा सकती है। ऐसा ही कुछ अब दिल्ली और केंद्र की राजनीती में चल रहा है। जिसका जीता जागता उदाहरण मोदी सरकार में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री रहे डॉ हर्षवर्धन को मंत्री पद से हटाने को लेकर समझा जा सकता है। इसके पीछे मोदी और शाह के संकेत छुपे हुए हैं। जिनको यदि डिकोड किया जाए तो यह पता लगता है।कि दिल्ली की राजनीती में डॉ साहब को वापिस लाने की तैयारी चल रही है। हालाकि भाजपा दिल्ली में गुटबाजी से सभी वाकिफ हैं। लेकिन उसके बाद भी डॉ साहब की छवि दिल्ली में अन्य भाजपा नेताओं के अलावा काफी भलेमानस की रही है। केजरीवाल के खिलाफ किरण बेदी के नेतृत्व में लड़े गए पिछले विधानसभा चुनावों से पहले डॉ हर्षवर्धन के नेतृत्व में लड़े गए विधानसभा चुनावो के परिणाम भाजपा के पास हैं। भाजपा इन्हीं कई कारणों से डॉ साहब को दिल्ली की राजनीती का चेहरा बना सकती है।किसी को भी मंत्रिमंडल में लेना या फिर निकालना प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार होता है लेकिन अब डॉ. हर्षवर्धन को हटाए जाने के बाद अब आम आदमी पार्टी को एक बड़ा मुद्दा मिल गया है। वे अब यही कहेंगे कि डॉ. हर्षवर्धन को इसीलिए हटाया गया है कि दिल्ली सरकार ने इतना शोर मचाया और अब राजधानी में हुई नाकामी केंद्र सरकार ने खुद ही स्वीकार कर ली है। बीजेपी के लिए यह ज़्यादा जोखिमपूर्ण इसलिए है कि अगले साल के शुरू में दिल्ली में तीनों नगर निगमों के चुनाव होने वाले हैं। अब दिल्ली बीजेपी किस मुंह से केजरीवाल सरकार को कोरोना के मोर्चे पर निकम्मा साबित करेगी।
डॉ. हर्षवर्धन को हटाए जाने के पीछे मोदी-शाह की क्या मंशा रही है, यह अभी कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन राजनीति समझने वाले इसके पीछे छिपे संदेशों को पढ़ने की कोशिश कर रहे हैं और कयास लगा रहे हैं। डॉ. हर्षवर्धन दिल्ली में बड़ी ही साफ़ छवि वाले नेता रहे हैं। वह ऐसे नेता रहे हैं जिनपर बीजेपी दांव लगाती रही है और जीतती भी रही है। भारत से पोलियो के उन्मूलन में उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता और यह श्रेय उन्होंने तब हासिल किया था जब वह दिल्ली में 1993 से 1998 के दौरान स्वास्थ्य मंत्री थे। वह और उनकी पार्टी वही कमाई अब तक कैश कर रहे हैं। दिल्ली के चंद उन नेताओं में से हैं जो विधानसभा चुनावों में कभी नहीं हारे। 1993 से लेकर 2013 के चुनावों तक वह कृष्ण नगर से लगातार जीतते रहे हैं। 2013 में जब केजरीवाल ने ईमानदारी का झंडा उठाकर राजनीति में एंट्री की थी, तब दिल्ली में बीजेपी के अध्यक्ष विजय गोयल थे। केजरीवाल शीला दीक्षित के साथ-साथ उन्हें भी भ्रष्ट साबित करने में जुटे हुए थे। तब बीजेपी ने डॉ. हर्षवर्धन पर ही दांव खेला था और सचमुच केजरीवाल एंड पार्टी के पास इसका कोई जवाब ही नहीं था। तब आम आदमी पार्टी यह कहती थी कि डॉ. हर्षवर्धन ईमानदार हैं लेकिन ग़लत पार्टी में हैं। बरहाल अब देखना यह है। कि भाजपा डॉ हर्षवर्धन को किस तरह से कहाँ जिम्मेदारी देती है।