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बालाजी श्रीवास्तव भी कठपुतली कमिश्नर होंगे? 

बालाजी श्रीवास्तव भी कठपुतली कमिश्नर होंगे? 

इंद्र वशिष्ठ

बालाजी श्रीवास्तव दिल्ली पुलिस के नए   कमिश्नर होंगे? बालाजी श्रीवास्तव को फिलहाल दिल्ली पुलिस कमिश्नर का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है।

गृह मंत्रालय ने मंगलवार 29 जून को यह आदेश जारी किया । जिसके अनुसार नियमित/ स्थायी कमिश्नर की नियुक्ति होने तक वह कमिश्नर का अतिरिक्त कार्यभार संभालेंगे।

कठपुतली कमिश्नर-

ऐसा लगातार दूसरी बार हो रहा है कि दिल्ली पुलिस आयुक्त के पद पर सीधे नियमित कमिश्नर की तैनाती न करके किसी वरिष्ठ अधिकारी को अतिरिक्त प्रभार दिया जा रहा है। जिससे लगता है कि सत्ताधारी नेता जानबूझ कर ही शायद ऐसा कर रहे हैं जिससे कि कार्यवाहक कमिश्नर पर हमेशा तबादला रुपी खतरे की तलवार लटकती रहे। कार्यवाहक कमिश्नर अगर उनकी कठपुतली या सत्ता का लठैत बनने से इनकार करे तो उसे तुरंत आसानी से हटाया जा सके। नियमित/ स्थायी कमिश्नर को  उसका कार्यकाल पूरा होने से पहले हटाया नहीं जा सकता।

कमिश्नर वही जो नेता मन भाए।-

वैसे सच्चाई तो यह है कि नियमित हो या कार्यवाहक, कमिश्नर तो उसे ही लगाया जाता है जो सत्ताधारी नेताओं का चहेता और आंख बंद कर उनके इशारे पर नाचे। लेकिन इसके बावजूद भी कुछ आईपीएस अपनी काबिलियत की छाप छोड़ जाते हैं।

लेकिन अब तो संविधान या कानून के प्रति निष्ठा,वफादारी की बजाए ज्यादातर आईपीएस राजनेताओं के प्रति ही निष्ठा भाव रखते हैं।

अगर जल्द ही बालाजी श्रीवास्तव को या किसी अन्य आईपीएस को नियमित कमिश्नर नहीं बनाया गया तो कठपुतली वाली बात सही साबित हो जाएगी।

चतुराई काम ना आई।-

कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव  30 जून को.सेवानिवृत्त हो गए। सत्ता के लठैत बन खाकी को खाक में मिलाने वाले सच्चिदानंद श्रीवास्तव को उनके आका नेताओं ने सेवा विस्तार नहीं दिया।

महत्वपूर्ण पद-

1988 बैच के आईपीएस बालाजी श्रीवास्तव दिल्ली पुलिस में स्पेशल कमिश्नर (सतर्कता) हैं।

बालाजी श्रीवास्तव दिल्ली पुलिस में  इंटेलिजेंस, आर्थिक अपराध शाखा, और स्पेशल सेल के स्पेशल कमिश्नर भी रहे हैं। वह उत्तर पश्चिम जिले में अशोक विहार के एसीपी और पूर्वी जिले के डीसीपी भी रहे हैं।

बालाजी श्रीवास्तव पुडुचेरी और मिजोरम में पुलिस महानिदेशक और अंडमान निकोबार में अतिरिक्त महानिदेशक के पद पर भी रहे हैं। वह नौ साल तक रॉ( आरएडब्ल्यू, कैबिनेट सचिवालय) में रहे और संवेदनशील जिम्मेदारियों को संभाल चुके हैं।

देखना है दम कितना बालाजी में है? –

बालाजी को लंबे समय यानी मार्च 2024 तक दिल्ली पुलिस में काम करने का अवसर मिलेगा।

पिछले कई सालों से कमिश्नर के पद पर ऐसे नाकाबिल आईपीएस अफसर आए हैं जिन्होंने  सत्ता के लठैत बन खाकी को खाक में मिला दिया। ऐसे कमिश्नरों के कारण ही पुलिस में भ्रष्टाचार व्याप्त है। ये कमिश्नर अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाने में भी विफल रहे। पेशेवर रुप से नाकाबिल कमिश्नरों के कारण ही आईपीएस अफसर और मातहत पुलिसकर्मी भी निरंकुश हो जाते हैं। जिसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ता हैं। आज भी हालत यह है कि लूट,झपटमारी आदि अपराध की सही एफआईआर तक दर्ज नहीं की जाती है। अपराध कम दिखाने के लिए अपराध को दर्ज ना करने या हल्की धारा में दर्ज किए जाने की परंपरा जारी है। थानों में लोगों से पुलिस सीधे मुंह बात तक नहीं करती। डीसीपी या अन्य वरिष्ठ अफसरों से मिलने के लिए भी लोगों को सिफारिश तक करानी पड़ती है।

अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि बालाजी श्रीवास्तव अपनी पेशेवर काबिलियत दिखा कर कमिश्नर पद का सम्मान,गरिमा बहाल करेंगे या वह अपने पूर्ववर्ती कमिश्नर की तरह सत्ता के लठैत बन पद की गरिमा को मटियामेट करेंगे।

दिल्ली पुलिस के कमिश्नर पद पर पहले अनेक ऐसे आईपीएस अफसर रहे हैं जिनकी काबिलियत और दमदार नेतृत्व क्षमता की मिसाल दी जाती है। काबिल कमिश्नर से ही आईपीएस भी डरते हैं।

बालाजी पर बालाजी की कृपा-

बालाजी के भगत बालाजी श्रीवास्तव को बालाजी(हनुमानजी) के दिन यानी मंगलवार को कमिश्नर का अतिरिक्त कार्यभार संभालने का आदेश मिला ।

बालाजी के लिए यह दिन एक ओर वजह से भी खास और शुभ हो गया है। मंगलवार को ही उनकी मां का जन्मदिन भी था।

बालाजी ने अपने दफ्तर में अपने मां,पिता की तस्वीर लगाई हुई है।

उत्तर प्रदेश में लखनऊ के मूल निवासी बालाजी श्रीवास्तव ने दिल्ली विश्वविद्यालय के

सेंट स्टीफन कॉलेज से बीए (अर्थशास्त्र),दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से एमए(अर्थशास्त्र) और एलएलबी किया।

दरकिनार-

1987 बैच के आईपीएस ताज हसन और सतेंद्र गर्ग को दरकिनार कर 1988 बैच के बालाजी श्रीवास्तव को यह जिम्मेदारी दी गई है।

उत्तरी पश्चिमी जिला के तत्कालीन डीसीपी सत्येंद्र गर्ग द्वारा माडल टाऊन के बिजनेसमैन सुशील गोयल की पत्नी से लाखों रुपए मूल्य की विदेशी पिस्तौल उपहार में लेने का भ्रष्टाचार का अनोखा मामला इस पत्रकार द्वारा 1999 में उजागर किया गया। बिना किसी फायदे के भला कोई महंगी पिस्तौल किसी को देता  है ?

तत्कालीन पुलिस कमिश्नर अजय राज़ शर्मा ने तुरंत डीसीपी सत्येंद्र गर्ग को जिला पुलिस उपायुक्त के पद से हटवा दिया। इस मामले में जांच के आदेश दिए। तत्कालीन संयुक्त पुलिस आयुक्त कृष्ण कांत पाल ने अपनी जांच रिपोर्ट में इसे भ्रष्टाचार का मामला पाया। इस मामले के कारण ही कई वर्षों तक सत्येंद्र गर्ग को पदोन्नति और महत्वपूर्ण पद नहीं दिया गया।

कमिश्नर ने पद को कलंकित किया-

सच्चिदानंद श्रीवास्तव को सत्ता का लठैत बन कमिश्नर पद को कलंकित करने के लिए याद किया जाएगा।

बेकसूर लड़कियों को देशद्रोही, दंगाई आंतकी बता कर जेल में डाल दिया गया। दंगों की जांच पर तो अदालत और रिटायर्ड आईपीएस जूलियो रिबैरो तक सवाल उठाई गई।

सच्चिदानंद श्रीवास्तव पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार और अपराध, अपराधियों पर अंकुश लगाने में भी नाकाम साबित हुए।

41 दिन का कमिश्नर-

सच्चिदानंद श्रीवास्तव कार्यवाहक कमिश्नर थे। उन्हें 21मई 2021 को ही नियमित कमिश्नर  के रुप मे नियुक्त किया गया था।

उन्हें पिछले साल फरवरी में दिल्ली पुलिस आयुक्त का अतिरिक्त प्रभार दिया गया था। इससे पहले उन्हें सीआरपीएफ से लाकर दिल्ली पुलिस के विशेष आयुक्त (कानून व्यवस्था) के रूप में तैनात किया गया था।

दो साल का कार्यकाल-

सुप्रीम कोर्ट ने कमिश्नर/डीजीपी और सीबीआई निदेशक आदि का कार्यकाल दो साल तय किया हुआ है। अगर वह अधिकारी तय कार्यकाल से पहले सेवानिवृत्त होने वाला हो तो उसका कार्यकाल बढ़ाया दिया जाता है।

अगर कार्यकाल नहीं बढ़ाया जाता तो वह अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देकर अदालत में गुहार लगा सकता है।  इस वजह से भी सरकार द्वारा नियमित की बजाय अतिरिक्त प्रभार दिया जाने लगा है।

दूसरा नियमित कमिश्नर के लिए यूपीएससी को सभी योग्य दावेदारों के नाम भेजने जरूरी होते है। जबकि किसी अफसर को अतिरिक्त प्रभार  देने के लिए सरकार स्वतंत्र है।

ऐसे में  सत्ताधारी दल यदि अपने चहेते यानी खास अफसर को ही नियुक्त करना चाहे तो वह उस पद का अतिरिक्त कार्यभार सौंपने का तरीका अपना सकती है। यह तरीका एक तरह से सुप्रीम कोर्ट के आदेश की काट माना जाता है।

कार्यवाहक नहीं-

साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को निर्देश दिया था कि वह किसी भी पुलिस अधिकारी को कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक नियुक्त न करें।

तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने तमाम राज्य सरकारों को पुलिस महानिदेशक या पुलिस आयुक्त पद के दावेदारों के नाम संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के पास विचार के लिए भेजने के लिए कहा था।

यूपीएसपी इन नामों पर विचार करने के बाद तीन नामों को तय करता है। राज्य या केंद्र शासित प्रदेश इन तीन नामों में से एक पर अपनी मुहर लगा सकते हैं। पीठ ने साथ ही यह भी कहा था कि राज्य सरकार पुलिस महानिदेशक या पुलिस आयुक्त का नाम तय करने के लिए पहले यह सुनिश्चित कर लें कि उनका कार्यकाल पर्याप्त बचा हो।

(लेखक *इंद्र वशिष्ठ* दिल्ली में तीस साल से *क्राइम रिपोर्टिंग* कर रहे हैं। *दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता* रहे हैं।)

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