साक्षी
– मृदुला घई
ये बेमानी भीड़ भाड़
लोक दिखावा क्यूँ चाहिए
भगवान है तुम हो
और साक्षी कौन चाहिए
ना रोका ना सगाई
ना जशन ना बधाई
ना चूड़ी ना कंगन
ना तौफे ना धन
ना मेहंदी ना संगीत
ना रिवाज़ ना रीत
अधखुले नैन तीरे नज़र
प्यार कब्ज़ा दिल पर
ये बेमानी भीड़ भाड़
लोक दिखावा क्यूँ चाहिए
भगवान है तुम हो
और साक्षी कौन चाहिए
ना सस्ता ना मंहगा
ना साड़ी ना लहंगा
ना साज़ ना श्रंगार
ना झुम्के ना हार
ना फूल ना गज़रा
ना लाली ना कज़रा
अधखुले होंठ मादक मुस्कान
प्यार तूफ़ान कब्ज़ाई जान
ये बेमानी भीड़ भाड़
लोक दिखावा क्यूँ चाहिए
भगवान है तुम हो
और साक्षी कौन चाहिए
ना वादे ना कसमे
ना मंत्र ना रस्मे
ना रोली ना चंदन
ना सिन्दूर ना गठबंधन
ना चेहरे ना घेरे
ना अग्नि ना फेरे
अंदाज़े ख्याल लाड प्यार
दिल चुराए हर बार
ये बेमानी भीड़ भाड़
लोक दिखावा क्यूँ चाहिए
भगवान है तुम हो
और साक्षी कौन चाहिए
ना घराती ना बाराती
ना संगी ना साथी
ना बाजा ना शहनाई
ना डोली ना विदाई
ना पीना ना खाना
ना नाच ना गाना
गर्म सांस बेहद प्यार
पूरी आस मूक इकरार
ये बेमानी भीड़ भाड़
लोक दिखावा क्यूँ चाहिए
भगवान है तुम हो
और साक्षी कौन चाहिए
ना इज्ज़त ना सतकार
ना कलश ना बंधनवार
ना दिया ना प्यार
ना आरती ना दुलार
ना गृहप्रवेश ना मुँहदिखाई
ना सेज ना घूँघटउठाई
आत्म सात प्रेम पुकार
आजीवन प्रेम है बरक़रार
ये बेमानी भीड़ भाड़
लोक दिखावा क्यूँ चाहिए
भगवान है तुम हो
और साक्षी कौन चाहिए