*काश तुम ना होते*
काश तुम ना होते
सिर्फ इक ख्वाब होते तुम
ज़रा आँखें मूंद लेते हम
पल भर कम होते गम
वो इंतज़ार आंसु फैला काजल
क्षण क्षण छन्नी करता छल
मीलों तक ढूँढती तुम्हे नज़र
मुर्झाते व्याकुल गजरे ड्योढ़ी पर
नाउम्मीद इत्र से बहकी रागीनी
अँधेरा फांसती शर्माई मायूस चाँदनी
काश तुम ना होते
सिर्फ इक ख्वाब होते तुम
ज़रा आँखें मूंद लेते हम
पल भर कम होते गम
रोमांचित मोमबत्तियों की बुझती लौ
पूर्णता खोजती अधूरी बिंदी वो
पायल की रुआँसी रुन झुन
दिल धड़कन की विछोह धुन
स्पर्श से महरूम रेशमी चादर
बेपरवाह खंडर सा विरान घर
काश तुम ना होते
सिर्फ इक ख्वाब होते तुम
ज़रा आँखें मूंद लेते हम
पल भर कम होते गम
गमगीन सा तेवर लिए फिज़ाएं
तीरों सा चीरती तेज़ हवाएं
तड़पते झरने सी प्रेम प्यास
खास मिलन की भटकती आस
गुनगुनाते होंठों की खामोश तन्हाई
उजड़ी महफ़िल की बासी शेहनाई
काश तुम ना होते
सिर्फ इक ख्वाब होते तुम
ज़रा आँखें मूंद लेते हम
पल भर हमारे होते तुम
कजरारे नैन दीदार से बहका
मुर्झाये गजरे लेते हम महका
वफ़ा इत्र सा घुल जाते
सफ़ेद चाँदनी सा प्रेम छिटकाते
दुल्हन श्रृंगार करा तुम्हारे हाथ
बन्ध जाते हम जन्मों साथ
काश तुम ना होते
सिर्फ इक ख्वाब होते तुम
ज़रा आँखें मूंद लेते हम
पल भर हमारे होते तुम
मृदुला घई
लेखक परिचय
अतिरिक्त केंद्रीय भविष्य निधि आयुक्त (मुख्यालय)
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन
श्रम और रोजगार मंत्रालय
भारत सरकारसाहित्यिक रुझान के चलते हिंदी की कई पत्र पत्रिकाओं में इनकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं ।
इनकी काफ़ी रचनाएँ औरतों और शोषित वर्गों के मुद्दों को बखूबी बयां करती हैं ।
‘यमुना’, ‘कल्लो’, ‘सच’, ‘उड़ान’, ‘बाल विधवा’, ‘बेटी’, ‘सती’, ‘बुनकर’, ‘देश के पत्रकार’ इत्यादि इनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं । हाल ही में उनकी रचना ‘देश के पत्रकार’ बहुत सारे समाचार पत्रों में छपी है और सोशल मीडिया में वायरल हो रही है ।
उर्दू के कई पत्र पत्रिकाओं में इनकी कई रचनाओं का अनुवाद छपा हैं ।
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