लालकिले पर हमला वाकई शर्मनाक है ?
तो सरकार को शर्म क्यों नहीं आ रही ?
गृहमंत्री अमित शाह और कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव पद पर क्यों ?
IPS नायक बनो खलनायक नहीं
इंद्र वशिष्ठ
लालकिले पर जो हुआ क्या वह वाकई शर्मनाक है? या बस यूं ही हंगामा बरपा है।
यह सवाल इस लिए उठ रहा है कि किसानों ने लालकिले पर कब्जा कर निशान साहिब और किसानों का झंडा लगा कर अगर वाकई देश को पूरी दुनिया में शर्मसार किया या देशद्रोह किया है तो फिर देश के गृहमंत्री के पद पर अमित शाह को और दिल्ली पुलिस के कार्यवाहक कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव को पद बने रहने का कोई हक नहीं है। इन दोनो के पद पर बने रहने से साफ है कि इस मामले का सिर्फ राजनीति के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
अगर वाकई सरकार इस मामले को लेकर गंभीर होती तो गृहमंत्री अमित शाह को राजधानी की कानून व्यवस्था की स्थिति संभालने में विफल रहने के लिए तुरंत इस्तीफा देना चाहिए था। पुलिस कमिश्नर को पद से हटाने के अलावा
उनके खिलाफ पुलिस कर्मियों और दिल्ली के लोगों की जान खतरे में डालने के लिए कार्रवाई की जानी चाहिए थी।
साल 2019 में तो वकीलों ने पुलिस वालों को ही जमकर पीटा था उस मामले में तो सरकार ने उल्टा बिना कसूर के स्पेशल कमिश्नर संजय सिंह का ही तबादला कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई असम में कामाख्या मंदिर गए थे उन्हें वहां कुछ असुविधा हुई तो एक एसपी को निलंबित तक कर दिया गया था।
दिल्ली में बम धमाकों के बाद तत्कालीन गृहमंत्री शिवराज पाटिल को सिर्फ़ इस वजह से पद गंवाना पड़ गया था कि वह घटनास्थलों पर अलग पोशाकों में नजर आ गए थे।
अब लालकिले जैसे संवेदनशील महत्वपूर्ण मामले में पुलिस कमिश्नर तक को पद से न हटाया जाना आश्चर्यजनक हैं।
पुलिस की लापरवाही-
दिल्ली पुलिस के स्पेशल कमिश्नर दीपेंद्र पाठक ने मीडिया को पहले ही बता दिया था कि पाकिस्तान द्वारा भी किसान आंदोलन में गडबड़ी की कोशिश की ज रही हैं किसानों को उकसाने के लिए पाकिस्तान से 308 टिवटर हैंडल का इस्तेमाल भी किया जा रहा है।
तो ऐसे में पुलिस और खुफिया एजेंसियों को क्या यह सब मालूम नहीं था कि कुछ किसान दिल्ली के अंदरूनी इलाकों में घुसने की कोशिश कर सकते हैं। ऐसे में पुलिस द्वारा सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था नहीं करना पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान लगाते हैं। असल में सच्चाई यह है कि पुलिस अफसरों की प्राथमिकता सिर्फ़ प्रधानमंत्री, मंत्री, जजों और लुटियंस इलाके की ही सुरक्षा करने की रहती है।
आम जनता की सुरक्षा और असुविधा की पुलिस को परवाह नहीं होती।
दीप सिद्दू का भाजपा कनेक्शन-
किसानों का सतनाम पन्नू का धड़ा दिल्ली में घुसने की बात खुलेआम पुलिस अफसरों के सामने कह रहा था। पंजाब के कलाकार दीप सिद्दू ने भी खुलेआम यह कहा था। इसी दीप सिद्दू ने भी लालकिले पर झंडा फहराया था। पंजाब के गुरदासपुर से भाजपा सांसद सन्नी देओल, प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह के साथ दीप सिद्दू की नजदीकी वाली वायरल तस्वीरें अलग ही कहानी बयां कर रही हैंं।
किसान को बदनाम मत करो-
लालकिले पर अपने झंडे लगाने के बाद अपना विरोध दर्ज करा कर किसान चुपचाप आराम से वापस चले गए। इसके बावजूद मीडिया द्वारा उन्हें उपद्रवी कहा जा रहा है।
दिल्ली तुम तो चुप ही रहो-
पिछले साल फरवरी में हुए दंगों और
1984 के दंगों के दौरान हजारों बेकसूर सिखों के नरसंहार की जिम्मेदार और गवाह दिल्ली को तो अब किसी को भी उपद्रवी कहने का नैतिक हक ही नहीं बनता है।
सोचो तलवारधारी सिख अगर वाकई दंगा करने पर उतारू हो जाते तो हालात कितने खतरनाक और बेकाबू हो जाते। ऐसे में कुछ किसानों के कारण सभी किसानों के बारे में गलत बयान बाजी करना उचित नहीं है।
किसान जितनी तादाद में लालकिले के अंदर पहुंच गए थे अगर उनकी मंशा गलत होती तो वह वहीं पर कब्जा करके बैठ सकते थे। तब सरकार के लिए और लोगों के लिए बहुत बड़ा संकट खड़ा हो सकता था।
किसानों की आवाज सुनो-
इससे साफ पता चलता है कि जैसे भगत सिंह ने असेंबली में बहरी अंग्रेज सरकार को सुनाने के लिए सिर्फ धमाके वाला बम फेंका था। उसी तरह किसानों ने भी सरकार तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए लालकिले पर झंडा लगाने का यह रास्ता चुना होगा।
इन किसानों का यह रास्ता गलत था या सही इस पर अलग अलग मत हो सकते हैं। उस पर कानून अनुसार कार्रवाई भी होगी। लेकिन इतना तो तय है कि यह सब किया कानून रद्द कराने के लिए ही गया। किसी आपराधिक मामले में भी नीयत या मकसद देखा जाता है।
इसे किसी भी तरह से देश के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई नहीं कहा जा सकता। लोगों को समझना चाहिए कि सरकार यानी राजनैतिक दल के सत्ताधारी नेता और देश दोनों अलग अलग होते हैं सत्ता में बैठे नेताओं द्वारा थोपे गए कानून का विरोध करना जनता का लोकतांत्रिक अधिकार है। सरकार का विरोध करने का मतलब देश का विरोध करना नहीं होता।
किसानों ने लालकिले पर लगे राष्ट्र ध्वज का अपमान नहीं किया। लालकिले पर अपने ध्वज लगाना देशद्रोह कैसे हो सकता है। जिसने भी हिंसा की और कानून अपने हाथ में लिया उसके खिलाफ तो कानून के अनुसार कार्रवाई की ही जाएगी ।
सत्ताधारी करें तो ठीक-
जब संसद, विधानसभा में या अन्य सरकारी कार्यक्रम (हाल ही में कोलकाता में) में जयश्रीराम या अन्य धर्म के नारे लगाए जा सकते हैं नियम कानून की धज्जियां उड़़ाई जाती हैं तो किसानों द्वारा लालकिले पर अपने धर्म के नारे लगाना झंडा फहराना अपराध कैसे माना जा सकता है ?
यह मामला सीधे सीधे सरकार की विफलता का है। किसानों ने जो किया उसके लिए सिर्फ और सिर्फ सरकार और पुलिस ही जिम्मेदार है। इन दोनों के कारण ही कुछ किसानों ने यह कदम उठाया। शेष किसानों ने शांतिपूर्ण तयशुदा रास्ते पर अपनी ट्रैक्टर परेड निकाली।
किसान दो महीने से दिल्ली की सीमा पर शांतिपूर्ण धरना दे रहे हैं। पचास से ज्यादा किसान यहां पर अपनी जान गंवा चुके हैं। लेकिन सरकार बिल्कुल संवेदनहीन रवैया अपनाए हुए है।
इसके पहले किसान कई महीने से पंजाब में धरना प्रदर्शन कर रहे थे लेकिन सरकार उनकी बात सुन नहीं रही थी। ऐसे में किसान अपनी सरकार के सामने जा कर गुहार लगाने के लिए आए। लेकिन सरकार ने अपनी लठैत पुलिस को आगे कर दिया जिसने किसानों को दिल्ली में घुसने से ही रोक दिया।
किसानों को घुसने से रोकने के लिए पुलिस ने रास्ता बंद किए हैं लेकिन अजीब बात यह है कि लोग रास्ते बंद करने के लिए किसानों को दोष दे रहे हैं।
आईपीएस अफसरों की भूमिका-
पुलिस जिस तरह किसी शिकायत/ मामले को मजमून/तथ्यों के आधार दीवानी या फौजदारी मामला तय करके उसके अनुसार कार्रवाई करती हैं। पुलिस साफ बता देती है कि यह दीवानी या असंज्ञेय अपराध का मामला है इसमें अदालत ही कार्रवाई करेगी पुलिस की इसमें कोई भूमिका नहीं है।
इसी तरह कमिश्नर /आईपीएस अफसर
को किसानों जैसे मामले में भी सरकार से साफ कह देना चाहिए कि यह कानून व्यवस्था से जुड़ा मामला नहीं है। यह सीधे सीधे सरकार द्वारा बनाए कानून के विरोध का मामला है लोगों को विरोध करने का अधिकार है। ऐसे मेंं सरकार/ नेताओं को तुरंत किसानों से बात करके समस्या का समाधान करना चाहिए।
शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने वालों को कुचलने के लिए लठैत की तरह पुलिस का इस्तेमाल किया जाना पुलिस का दुरुपयोग होता है।
काश आईपीएस अफसर इतनी ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का पालन करने वाले होते तो लालकिले जैसी घटना होने की नौबत नहीं आती। किसानों को आजाद देश में महीनों गुहार लगानी नहीं पड़ती।
आईपीएस नायक बनो खलनायक नहीं-
लेकिन अफसोस आईपीएस जैसी सेवा में आने के बाद भी अफसर नेताओं के लठैत के रुप में काम करते हैं। ऐसे अफसरों के कारण ही पुलिस की छवि नायक की बजाए खलनायक की बन गई है।
क्या आईपीएस अफसर इतने अनाडी होते हैं कि उन्हें यह समझ नहीं आता कि नेता उन्हें अपने फायदे के लिए लठैत की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। आईपीएस कानून और संविधान के तहत काम करने की शपथ लेते हैं लेकिन मनचाही पोस्टिंग जैसे निजी फायदे के लिए वह नेताओं के दरबारी बनने से भी नहीं शरमाते। आईपीएस अफसरों की इसी बात का फायदा नेता जमकर उठाते हैं। आईपीएस अगर ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करें और नेताओं की गलत बात को मानने से इनकार कर दें तो ही न केवल पुलिस का बल्कि देश और समाज का भला हो जाए।
जैसे ही किसान दिल्ली आए उन्हें सरकार तक आसानी से पहुंचने देने की व्यवस्था पुलिस को करनी चाहिए थी। लेकिन पुलिस ने अपने आकाओं को खुश करने के लिए उल्टा काम किया। किसानों को दिल्ली में घुसने से ही रोक दिया। किसानों को अगर पुलिस न रोकती तो यह समस्या दो दिन में हल हो सकती थी।
किसानों के साथ अन्याय-
क्या किसानों को दिल्ली आकर शांतिपूर्ण तरीक़े से अपनी सरकार के गलत कानून का विरोध करने का हक न देना किसानों के साथ अन्याय नहीं है ?
कैसा लोकतंत्र ? लोक पर तंत्र हावी –
यह कैसा लोकतंत्र हैं कि जिन नेताओं को लोग चुनते हैं वह सत्ता संभालने के बाद नागरिकों के साथ गुलामों जैसा व्यवहार करते हैं। पुलिस की ताकत के कारण ही नेता जनता को गुलाम समझने की हिम्मत करते हैं।
किसानों की शुरू से एक ही मांग है कि नए बनाए तीनों कानूनों को खत्म किया जाए। इसके बावजूद सरकार बार बार बैठकें करके मामले को लटका रही है। सरकार अगर कानून बनाने से पहले ही किसानों के साथ बैठकें कर लेती तो यह नौबत नहीं आती।
सरकार द्वारा बिना मांगे और बिना किसानों से सलाह के यह कानून बना देना ही उसकी नीयत पर सवालिया निशान लगा देता है। राज्यसभा में जिस तरह सांसदों की वोटिंग की मांग को अनसुना कर ध्वनि मत से इस कानून को
पास किया गया उस पर संविधान विशेषज्ञ भी सवाल उठा चुके हैं।
पुलिस को बता कर दिल्ली में घुसें-
25 जनवरी की सुबह किसान मजदूर संघर्ष कमेटी (पंजाब) के अध्यक्ष सतनाम सिंह पन्नू और महासचिव सरवन सिंह पंधेर के अलावा कई अन्य नेताओं ने मंच से एलान किया कि किसान मजदूर संघर्ष कमेटी हर हाल में रिंग रोड पर ट्रैक्टर परेड निकालेगी। कमेटी अपने रूट पर कायम है। पुलिस बेशक रोकने की कोशिश करे, लेकिन हम इसी रूट पर ही परेड निकालेंगे।
सतनाम सिंह पन्नू और सरवन सिंह पंधेर की सोमवार दोपहर के बाद दो बार पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक हुई। इसके बाद पंधेर ने मीडिया से कहा किसान मजदूर संघर्ष कमेटी गणतंत्र दिवस पर पहले से निर्धारित बाहरी रिंग रोड पर ही ट्रैक्टर परेड निकालेगी।
(ये लेखक के अपने निजी और खबरों पर आधारित विचार है)