थानोंं के रसोईया आईपीएस की रसोई में।
सरकारी कार बनी परिवार की सवारी।
इंद्र वशिष्ठ
थानोंं के रसोईया/ बावर्ची आईपीएस अफसरों के घरों में रोटियां सेकने मेंं लगे हुए हैं। इसीलिए पुलिस के जवानों को कई बार थाने के मैस मेंं ढंग का खाना भी समय पर नहीं मिलता है।
इसी तरह पुलिस की गाड़ियों का भी अनेक आईपीएस अफसरों द्वारा अपने निजी कार्यों के लिए जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है।
और तो और रिटायर्ड आईपीएस अफसर द्वारा पुलिस के रसोईयों और ड्राइवर का इस्तेमाल किया जाता है।
आईपीएस की रसोई मेंं थानों के रसोईया-
पुलिस सूत्रों के अनुसार थाने मेंं ही रहने वाले पुलिसकर्मियों के लिए थाने के मैस मेंं भोजन की व्यवस्था है। भोजन के लिए पुलिसकर्मियों को खुराक/ डाइट के हिसाब से पैसा देना होता है। इसके बावजूद उन्हें कई बार समय पर ढंग का खाना तक नहीं मिलता है। क्योंकि मैस के अनेक रसोईये कई आईपीएस अफसरों के घरों पर काम करते हैं। थाने के मैस के लिए बाहर से दूसरे काम चलाऊ रसोईये का इंतजाम करना पड़ता है। जिसके लिए पुलिसकर्मियों को अलग से ज्यादा पैसा देना पड़ता है। संपर्क सभाओं में वरिष्ठ अफसरों के सामने मातहतों द्वारा मैस मेंं रसोईये न होने की बात उठाई जाती है। थाने में रहने वाले पुलिसकर्मियों को मजबूरी में कई बार ढाबों मेंं खाना पडता है।
IPS की बदतमीज पत्नी की सेवा को मजबूर रसोईया-
पुलिस सूत्रों के अनुसार एक रिटायर्ड स्पेशल सीपी जिसके खिलाफ जबरन वसूली का मामला भी दर्ज हुआ था उनके घर पर अब भी पुलिस का रसोईया ही भोजन बनाता है। हालांंकि अफसर की बदतमीज पत्नी के कारण एक रसोईये ने तो वहां काम करने से इंकार कर दिया है। रिकॉर्ड के अनुसार रसोईया पश्चिम जिले के थाने मेंं तैनात है लेकिन वह खाना रिटायर्ड अफसर के घर बनाता है। एक रसोईये ने जिले के वरिष्ठ अफसरों को उस अफसर की बदतमीज पत्नी के बारे मेंं बताया। जिला पुलिस के अफसर ने उस रसोईये की बात मान ली और उसे मैस मेंं ही काम करने को कह दिया। उधर रसोईए के न आने पर रिटायर्ड अफसर ने जिले के वरिष्ठ अफसर पर दबाव डाला जिसके बाद एक दूसरे रसोईये को उस रिटायर्ड अफसर के घर भेजा गया। यह कहानी सिर्फ़ किसी एक रसोईये/ कुक की नहीं है। ऐसे अनेक वर्तमान एवं रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं जो पद का दुरुपयोग सरकारी रसोईये,ड्राइवर, सफाई कर्मचारी और माली से अपने घरों में काम करवा रहे हैं।
मातहत रसोईया का इंतजाम खुद करते हैं-
सूत्रों के अनुसार मैस के लिए पुलिस का ही रसोईया होता है लेकिन अब निजी एजेंसियों द्वारा भी रसोईया लिए जाते हैं। इसके लिए 25 हजार रुपए प्रति रसोईया का भुगतान पुलिस एजेंसी को करती है। दूसरी ओर जो सरकारी रसोईये हैं उनका तो वेतन पैंतालीस हजार रुपए तक है। अफसरों के घरों पर काम करने के कारण मैस के लिए अलग से दूसरा रसोईया रखना पडता है उसके वेतन के लिए पुलिसकर्मियों को अपनी जेब से पैसा देना पडता हैं।
कारों का दुरुपयोग-
आईपीएस अफसरों द्वारा सरकारी कार का निजी कार्यों के जमकर इस्तेमाल किया जाता है। अफसरों के बच्चों को स्कूल आने जाने, पत्नी और रिश्तेदारों तक के लिए सरकारी गाड़ियो का इस्तेमाल किया जाता है।
वरिष्ठ अफसर ही नहीं डीसीपी तक ऐसा करते हैं। हर अफसर को एक सरकारी कार मिलती है। इसका इस्तेमाल तो निजी कार्य के लिए करते ही है इसके अलावा थाने या जिले के अन्य अफसरों की गाड़ी लेकर अपने घर,परिवार के लिए इस्तेमाल करते हैं।
पुलिस सूत्रों के अनुसार जिले में महिला अपराध शाखा (सीएडब्लू) , पीजी सेल और हेडक्वार्टर एसीपी के पद पर तैनात अफसरों के नाम से नई गाड़ी आती है लेकिन वह गाड़ी वरिष्ठ आईपीएस अफसरों द्वारा निजी इस्तेमाल के लिए ले ली जाती है। एसएचओ के लिए भी स्कार्पियो हैं दूसरी ओर कई एसीपी पुरानी जिप्सी का ही इस्तेमाल करने को मजबूर हैं। अगर कोई हल्का यानी कमजोर /शरीफ/दब्बू एडशिनल डीसीपी हैं तो उसकी नई गाड़ी भी अफसर अपने निजी इस्तेमाल के लिए रख लेते हैं।
पुलिस की गाड़ी की पहचान हो –
एक वरिष्ठ पुलिस अफसर का कहना है कि पुलिस की गाड़ियों पर पुलिस का लाल नीला रंग करवाया जाना चाहिए। इसके अलावा गाड़ी पर अफसर का पद साफ लिखा जाना चाहिए ताकि लोगों को भी पता रहे कि गाड़ी किस अफसर की है। अभी तो ऐसा होता है कि पुलिस की गाड़ियों से बत्ती उतार कर वरिष्ठ अफसरों के परिजनों द्वारा उसे निजी गाड़ी की तरह आसानी से इस्तेमाल किया जाता हैं। किसी को यह पता ही नहीं चलता कि यह पुलिस की गाड़ी है। गाड़ी पर पुलिस का रंग होने से उसका निजी गाड़ी के रुप मेंं इस्तेमाल बंद हो जाएगा।
रिटायर्ड पुलिस अफसर तक पुलिस के ड्राइवर का भी सालों तक इस्तेमाल करते रहते हैं।
पुलिस की गाड़ी राजस्थान मेंं –
नई दिल्ली जिले के एक तत्कालीन डीसीपी के बारे में तो कहा जाता है कि उसने दो सरकारी गाड़ियां राजस्थान में अपने परिवार की सेवा में समर्पित की हुई थी।
दादी की सीख को खाक में मिलाया-
इसी तरह दो जिलों में डीसीपी रह चुकी महिला डीसीपी के बारे में बताया जाता है कि उसने भी जिले में पुलिस की एक गाड़ी अपने पिता/परिवार की सेवा में लगा दी थी। हालांकि यह डीसीपी ढिंढोरा पीटती हैंं कि उसने तो ईमानदारी अपनी दादी से सीखीं थी दादी कहती थी कि बिना पूछे किसी के खेत से एक गन्ना भी नहीं लेना चाहिए। अपने निजी कार्य/ फटीक के लिए यह डीसीपी भी अपने चहेते सब इंस्पेक्टर का अपने साथ ही तबादला करवा लेती है।
सूत्रों के अनुसार दक्षिण जिले के एक तत्कालीन डीसीपी जो डेपुटेशन पर गए हुए है लेकिन पुलिस की गाड़ी उनकी सेवा में भी बताई जाती हैं।
वैसे ऐसा नहीं है कि इस तरह कई गाड़ियां आजकल के अफसर ही रखने लगे हैंं। भ्रष्ट अफसरों द्वारा सरकारी कारों का इस तरह इस्तेमाल कर सरकार को चूना लगाने की पुरानी परंपरा है।
मातहत गुलाम ?-
पुलिस मेंं सिपाही,हवलदार और अन्य मातहत का इस्तेमाल अफसरों द्वारा निजी नौकर यानी गुलाम की तरह करने की परंपरा आज भी कायम है। पारिवारिक/निजी कामों के लिए अफसरों द्वारा इन्हें इस्तेमाल किया जाता है। कई ऐसे भी अफसर रहे हैं जो दिल्ली से बाहर के राज्यों जैसे हरियाणा, पंजाब, राजस्थान में मौजूद अपने घर ,कोठी और फार्म हाऊस की देखभाल तक के लिए पुलिसकर्मियों का इस्तेमाल करते रहे हैं। अफसर उन पुलिस वालों की हाजिरी रिकॉर्ड में दिल्ली में दिखाते हैं लेकिन उन्हें रखते अपने निजी ठिकानों पर हैं।
इस पर अंकुश लगाने के लिए पुलिसकर्मियो की हाजिरी के लिए बायोमैट्रिक सिस्टम लगाया जाना चाहिए।
ऐसा नहीं है कि आईपीएस ही ऐसा करते हैंं। एक तत्कालीन एसएचओ तो होमगार्डों से दक्षिण दिल्ली में अपनी हथियार की दुकान की चौकीदारी भी कराया करता था।
कुछ पुलिस वाले ऐसे भी होते हैं जो अपने अफसरों को “सेवा” करके खुश रखते हैं और पुलिस की नौकरी के समय मेंं अपने दूसरे धंधे करते हैं। ऐसा ही एक मामला कुछ साल पहले सामने आया जब बस चलाते हुए एक ड्राइवर पकड़ा गया तो पाया कि वह पुलिसवाला है।
IPS लगा रहे सरकार को चूना –
नाम उजागर न करने की शर्त पर एक वरिष्ठ पुलिस अफसर ने बताया कि इस समय भी ऐसे बहुत सारे आईपीएस हैं जो कि एक से ज्यादा सरकारी कारों और अनेक पुलिसकर्मियों का अपने निजी कार्य के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
ऐसे वरिष्ठ आईपीएस जो दिल्ली से बाहर तैनात हैं या डेपुटेशन पर गए हैं उनके घरों में भी दिल्ली पुलिस कर्मी सेवा में हैं। रिकॉर्ड में यह सब थाने या अन्य यूनिट मेंं तैनात हैं लेकिन असल में काम अफसरों के घर परिवार के कर रहे हैं।
पुलिसकर्मियों का निजी नौकर की तरह और सरकारी कारों का निजी इस्तेमाल करने वाले आईपीएस ईमानदार तो हो ही नहीं सकते। एक सिपाही का वेतन करीब चालीस हजार रुपए होता है। सरकारी गाडी पर ड्राइवर भी पुलिस का ही होता है। मान लो अगर किसी आईपीएस ने गैरकानूनी तरीक़े से एक सिपाही, एक ड्राइवर, एक रसोईया और एक गाडी भी अपने निजी इस्तेमाल में लगाई हुई हैं तो वह सरकार को हर महीने एक लाख रुपए से ज्यादा का चूना लगा रहा है।
आईपीएस हो ईमानदार तो भला कैसे न रुके भ्रष्टाचार-
इस अफसर द्वारा बताया तो यहां तक गया है कि कई अफसरों ने तो बीसियों पुलिसकर्मियों को अपने निजी कामों/ सेवा के लिए रखा हुआ है। जबकि अपराध की रोकथाम और कानून व्यवस्था के लिए पुलिस बल की संख्या कम होने की दुहाई दी जाती हैं। भला ऐसे आईपीएस को ईमानदार कैसे माना जा सकता है। ऐसे अफसर ही एसएचओ से निजी काम /लाभ या सुविधा लेते है। ऐसे अफसरों के कारण ही पुलिस मेंं भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। जाहिर सी बात एसएचओ अगर एक रुपए की फटीक अफसर के लिए करेगा तो सौ रुपए की वसूली मातहतों से अपने लिए भी कराएगा ही।
एसएचओ एक रुपया देकर सौ वसूलेगा-
इस तरह फटीक/अन्य निजी लाभ लेने वाले अफसर को एसएचओ एक तरह से अपना जर खरीद गुलाम बना लेता है। ऐसे अफसर पूरी सर्विस के दौरान उस एसएचओ या पुलिस कर्मी को बचाने और मलाईदार तैनाती कराने के लिए बाध्य हो जाते हैं। इसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ता है। एसएचओ या अन्य पुलिसकर्मी फटीक या सेवा अपनी जेब से तो करेगा नहीं सीधी सी बात है कि इसके लिए वसूली या रिश्वतखोरी ही करेगा। इसलिए पुलिस में भ्रष्टाचार के लिए अफसर ही जिम्मेदार है।
कमिश्नर डडवाल ने आईपीएस की लगाम कसी-
ऐसे आईपीएस भी हैं जो जिले के डीसीपी पद से लेकर जहां भी तैनात होते हैं अपने चहेते पुलिसकर्मियों को अपने साथ ही रखते हैं। तत्कालीन पुलिस कमिश्नर युद्ववीर सिंह डडवाल ने पुलिस अफसरों की उपरोक्त ऐसी हरकतों पर रोक लगाई थी। लेकिन ज्यादातर आईपीएस इन सुविधाओं को भोगने में शामिल है इसलिए यह परंपरा जारी है।
कमिश्नर में दम है तो दिखाए-
अगर पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव चाहे और ईमानदारी से कोशिश करें तो पुलिसकर्मियों और गाड़ियों के दुरुपयोग को आसानी से बंद किया जा सकता है। पुलिस अफसरों की निजी सेवा मेंं लगे पुलिसकर्मियों को वहां से हटा पुलिस के कार्यों मेंं लगाया जाए। ऐसा नहीं हैं कि पुलिस कमिश्नर इन सब बातों से अनजान होता है लेकिन कोई भी पुलिस कमिश्नर सरकारी धन की बर्बादी और पुलिस बल के दुरुपयोग की परंपरा को बंद नहीं करता क्योंकि वह खुद भी यह सब सुविधाएं भोगता है।
गृहमंत्री अफसरों पर अंकुश लगाओ-
गृहमंत्री अमित शाह को सरकारी धन/ संसाधनों की बर्बादी करने वाले और पुलिस बल का निजी गुलाम की तरह इस्तेमाल करनेवाले आईपीएस अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। ऐसे आईपीएस अफसरों के खिलाफ कार्रवाई किए जाने पर ही पुलिस मेंं व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकता है।
थाने में सफाई कैसे हो –
एक वरिष्ठ पुलिस अफसर के अनुसार
प्रधानमंत्री द्वारा स्वच्छता अभियान चलाया हुआ है। पुलिस कमिश्नर भी थानों मेंं सफाई रखने को कहते हैं लेकिन थाने में सफाई के लिए तैनात सफाई कर्मी भी आईपीएस अफसरों के घरों की सफाई मेंं लगा दिए जाते हैं। इसलिए थानों मेंं सफाई का काम सही तरह नहीं होता है। जिससे बीमारी फैलने का खतरा रहता है। मातहत गंदे माहौल मेंं रहने को मजबूर हैं। एक रिटायर्ड एसीपी के अनुसार दो तिहाई सफाई कर्मी अफसरों के घरों में लगे होते हैं। (ये संवाददाता की खोजबीन के आधार पर है)