मंत्रालय मेंं छिपे गद्दारों के पकडे जाने पर ही जुडेगी पत्रकार जासूसी कांड की कडियां
इंद्र वशिष्ठ
आतंकवादियों का मुंह खुलवाने मेंं माहिर स्पेशल सेल के तेज तर्रार अफसर Freelance journalist Rajiv Sharma पत्रकार राजीव शर्मा से 6 दिनों में उन गद्दार अफसर /कर्मचारी के नाम तक नहीं उगलवा पाए जो उसे गोपनीय सूचनाएं उपलब्ध कराते थे। उनके पकड़े जाने पर ही कडी से कडी जुडेगी वरना पुलिस के दावे पर सवालिया निशान लग जाएगा।
खुफिया एजेंसियों पर सवालिया निशान-
इस मामले ने केंद्रीय खुफिया एजेंसियों की कार्य प्रणाली और भूमिका पर सवालिया निशान लगा दिया है।
पुलिस के दावे के अनुसार राजीव 2016 से गोपनीय सूचनाएं चीन को दे रहा था। इतने लंबे समय से राजीव मंत्रालयों के अफसरों/ कर्मचारियों से गोपनीय सूचना लेकर चीन को देता रहा और खुफिया एजेंसियों को अब जाकर भनक लगी।
दिल्ली पुलिस ने केंद्रीय खुफिया एजेंसी की सूचना पर चीन के लिए जासूसी करने के आरोप में पत्रकार राजीव शर्मा,चीन की महिला किंग शी और नेपाल के शेर सिंह को गिरफ्तार किया ।
जॉब का ऑफर देकर जासूस बनाया-
स्पेशल सेल के डीसीपी संजीव यादव के अनुसार चीन के खुफिया विभाग के अफसर माइकल ने मीडिया कंपनी वाला बन कर साल 2016 मेंं राजीव शर्मा से संपर्क किया। माइकल ने राजीव को जॉब का ऑफर देकर चीन बुलाया और वहां अपना असली मकसद बताया।
भारत चीन विवाद संबंधी गोपनीय/ संवेदनशील/सूचना/ जानकारी, भारतीय सेना की तैनाती, रक्षा खरीद संबंधी सूचनाएं उपलब्ध कराने की एवज में मोटी रकम का लालच दिया।
दलाई लामा के बारे में भी लिखने/ सूचना देने को कहा गया था।
राजीव ने 2016 से 2018 तक माइकल को लगातार गोपनीय/ संवेदनशील सूचनाएं दी। जनवरी 2019 मेंं खुफिया विभाग के दूसरे अफसर जार्ज से राजीव का संपर्क हुआ।
विदेशों में मुलाकात-
राजीव की चीन के अलावा लाओस, मालदीव,थाईलैंड, मलेशिया और काठमांडू आदि देशों में चीन के इन जासूस अफसरों के साथ मीटिंग होती थी।
राजीव सेना और भारत की सुरक्षा से जुड़ी संवेदनशील/गोपनीय/ रणनीतिक सूचनाएं जार्ज को देता था। इसके एवज में हवाला और अन्य माध्यम से राजीव को मोटी रकम मिलती थी।
जासूसों को धन देने वाली कंपनी-
चीन की खुफिया एजेंसी ने दिल्ली के महिपाल पुर मेंं एमजेड मॉल और एमजेड फार्मेसी नामक कंपनी बनाई हुई थी। यह कंपनी भारत से दवाओं का चीन मेंं निर्यात करती थी जिसके एवज मेंं चीन से पैसा आता था। यह कंपनी सिर्फ दिखावे के लिए यह काम करती थी। इस शैल कंपनी का असली काम चीन से आए पैसे को राजीव जैसे एजेंटों को देने का था। यह कंपनी चीन के एक दंपति जांग चांग और उसकी पत्नी चांग ली ने सूरज और उषा के जाली नाम से बनाई थी। यह दंपति किंग शी और शेर सिंह उर्फ राज बोरा को कंपनी का डायरेक्टर बना कर खुद चीन चला गया। किंग शी और शेर सिंह एजेंट को पैसा देते थे।
पुलिस के इस बयान से पता चलता है कि राजीव के अलावा और भी जासूस/एजेंट मौजूद हैं।
30 लाख मिले या 45 लाख ?-
डीसीपी संजीव यादव ने प्रेस कांफ्रेंस मेंं बताया कि एक- सवा साल में ही राजीव के पास 40 से 45 लाख रुपए आए थे।
लेकिन डीसीपी ने प्रेस रिलीज मेंं तीस लाख रुपए लिखा है। यह रकम जार्ज ने दस किस्तों में जनवरी 2019 से सितंबर 2020 के दौरान दी थी।
प्रति लेख/ सूचना के राजीव को पांच सौ से एक हजार डालर तक भी दिए जाते थे।
पांच साल का हिसाब-
अगर पुलिस की बात सही माने कि राजीव 2016 से सूचनाएं बेच रहा था तो उसे मिलने वाली रकम अब तक उपरोक्त सवा साल की आमदनी की औसत से तो एक-दो करोड़ रुपए तो होनी चाहिए। क्या पुलिस 6 दिन मेंं यह पता भी नहीं लगा पाई कि करीब पांच साल में राजीव को कुल कितनी रकम मिली थी।
सूचना कैसे और किससे मिलती थी ?
डीसीपी के अनुसार पत्रकार होने के कारण राजीव की मंत्रालय मेंं तमाम लोगों तक आसानी से पहुंच थी। उन लोगों से जानकारी/ सूचना जुटा कर वह चीन के अफसरों को दे देता।
क्या अफसर राजीव को ऐसी सूचना दे देते थे जो कि दूसरे देश के काम आए ?
डीसीपी ने बताया कि राजीव ने जो सूचना भेजी है वह सारी सूचनाएं उसके सोशल मीडिया एकाउंट और ईमेल पर हैं।
खुफिया एजेंसी की मदद से उन सूचनाओं को एक्सेस किया जा रहा है। उसके बाद ही पता चलेगा कि राजीव ने क्या क्या सूचनाएं दी थी।
तभी यह पता लग पाएगा का यह सूचना/ दस्तावेज किस अफसर के पास हो सकती हैं और कहां से निकल सकती हैं।
कोई अफसर मिला हुआ था ?
डीसीपी के अनुसार यह जांच का विषय है लेकिन इनसे पूछताछ में अभी तक कोई सीधा कनेक्शन नहीं मिला है।
अफसर असली जड़-
हैरानी की बात है कि स्पेशल सेल के तेज तर्रार अफसर पत्रकार से 6 दिन मेंं उन गद्दार सरकारी अफसरों के नाम तक नहीं उगलवा पाई जो उसे सूचनाएं देते थे।
जबकि असली जड़ तो वह गद्दार अफसर /कर्मचारी ही है जो गोपनीय जानकारी राजीव को उपलब्ध कराते थे। अगर गद्दार अफसर गोपनीय सूचना या जानकारी नहीं देते तो गद्दार राजीव चीनी अफसरों को भला क्या बेचता।
कडी से कडी जुड़ना है जरूरी-
इस मामले में राजीव तो एक मोहरा/ प्यादा ही है। इस जासूसी कांड में कडी से कडी तो पूरी तरह तभी जुडेगी जब गद्दार अफसर पकडे जाएंगे।
अदालत मेंं भी कडी से कडी जुडऩे पर ही पता चलता है कि पुलिस के आरोप/ दावे मेंं कितना दम हैं।
बेकसूर पत्रकार को फंसा दिया-
उल्लेखनीय है कि 2002 मेंं इसी स्पेशल सेल ने कश्मीर टाइम्स के बेकसूर पत्रकार इफ्तिखार गिलानी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। गिलानी से सेना के गोपनीय दस्तावेज बरामद होने का दावा किया गया था।
अदालत में सेना की खुफिया इकाई के महानिदेशक ने पुलिस की पोल खोल दी कि बरामद दस्तावेज गोपनीय नहीं है।
पुलिस के कारण इफ्तिखार को सात महीने जेल में रहना पड़ा था।